श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं तत: |
यस्मिन्स्थितो न दु:खेन गुरुणापि विचाल्यते ||
पद पदार्थ
यं लब्ध्वा – ऐसे योग को प्राप्त कर
अपरं लाभं – और कोई लाभ
तत: अधिकं – उससे भी बड़ा
न मन्यते – विचार नहीं करेंगे ( उस योग स्थिति से दूर होने पर भी )
यस्मिन् स्थित: – जो इस योग स्थिति में है
गुरुणा अपि दु:खेन – अत्यंत दुःख से पीड़ित होने पर भी
नविचाल्यते – उसके मन में उत्तेजना नहीं है
सरल अनुवाद
ऐसे योग स्थिति को प्राप्त कर, वह और कोई लाभ को उससे भी बेहतर नहीं समझेगा और अत्यंत दुःख से पीड़ित होने पर भी उसके मन में उत्तेजना नहीं होता….
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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