६.२२ – यं लब्ध्वा चापरं लाभम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ६

<< अध्याय ६ श्लोक २१

श्लोक

यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं तत: |
यस्मिन्स्थितो न दु:खेन गुरुणापि विचाल्यते ||

पद पदार्थ

यं लब्ध्वा – ऐसे योग को प्राप्त कर
अपरं लाभं – और कोई लाभ
तत: अधिकं – उससे भी बड़ा
न मन्यते – विचार नहीं करेंगे ( उस योग स्थिति से दूर होने पर भी )
यस्मिन् स्थित: – जो इस योग स्थिति में है
गुरुणा अपि दु:खेन – अत्यंत दुःख से पीड़ित होने पर भी
नविचाल्यते – उसके मन में उत्तेजना नहीं है

सरल अनुवाद

ऐसे योग स्थिति को प्राप्त कर, वह और कोई लाभ को उससे भी बेहतर नहीं समझेगा और अत्यंत दुःख से पीड़ित होने पर भी उसके मन में उत्तेजना नहीं होता….

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय ६ श्लोक २३

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/6-22/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org