श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अर्जुन उवाच
योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन ।
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् ।।
पद पदार्थ
अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहा
मधुसूदन कृष्ण – हे कृष्ण जो राक्षस मधु का वध किया
य: अयं साम्येन योग: – यह योग जो सर्वत्र समभाव का दर्शन है
त्वया – तुम्हारे द्वारा
प्रोक्तः – अनुदेशित किया गया
एतस्य स्थिरां स्थितिं – यह योग स्थिर रहता है
चञ्चलत्वात् – मन के अस्थिर होने के कारण
न पश्यामि – मैं नहीं देख रहा हूँ
सरल अनुवाद
अर्जुन ने कहा, हे कृष्ण, जो राक्षस मधु का वध किया! यह योग जो सर्वत्र समभाव का दर्शन है और जो तुम्हारे द्वारा अनुदेशित किया गया है, मैं, मेरे अस्थिर मन के कारण, इसे स्थिर नहीं देख पा रहा हूँ।
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