७.८ – रसोऽहम् अप्सु कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ७

<< अध्याय ७ श्लोक ७

श्लोक

रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभाऽस्मि शशिसूर्ययोः ।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥

पद पदार्थ

कौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!
अहं – मैं
अप्सु – पानी में
रस: (अस्मि) – अच्छा स्वाद हूँ
शशिसूर्ययो:- चन्द्रमा और सूर्य का
प्रभाऽस्मि – मैं तेज हूँ
सर्व वेदेषु – सभी वेदों में
प्रणव: (अस्मि) – मैं ओंकार हूँ
खे – आकाश में
शब्द: (अस्मि) – मैं ध्वनि का गुण हूँ
नृषु – पुरुषों में
पौरुषम् (अस्मि) – मैं पुरुषत्व हूँ

सरल अनुवाद

हे कुन्तीपुत्र! मैं पानी में अच्छा स्वाद हूँ | मैं चंद्रमा और सूर्य का तेज हूँ.| मैं सभी वेदों में ओंकार हूँ। मैं आकाश में ध्वनि का गुण हूँ। मैं पुरुषों में पुरुषत्व हूँ| 

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

>> अध्याय ७.९

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/7-8/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org