१२.३ – ये त्वक्षरम् अनिर्देश्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक २ श्लोक ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते।सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम्।। पद पदार्थ अनिर्देश्यं – अनिर्वचनीय है (क्योंकि वह शरीर से भिन्न है, तथा जिसे देवता, मनुष्य आदि नहीं कहा जा सकता)अव्यक्तं – अविवेचनीय है (क्योंकि वह नेत्रों आदि इन्द्रियों से नहीं देखा … Read more

१२.२ – मय्यावेश्य मनो ये मां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १ श्लोक श्री भगवानुवाच – मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।। पद पदार्थ श्री भगवानुवाच – भगवान ने कहामन: – उनके हृदयमयि – मुझमेंआवेश्य – रखकरपरया श्रद्धया उपासते – महान विश्वास के साथनित्य युक्ता – हमेशा … Read more

१२.१ – एवं सततयुक्ता ये

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय ११ श्लोक ५५ श्लोक अर्जुन उवाच – एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते।ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः।। पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने पूछाएवं – पूर्व श्लोक में बताए अनुसारसतत युक्ता: – सदैव तुम्हारे साथ रहने की इच्छा रखते हुएये भक्ता: – … Read more

अध्याय १२ – भक्ति योग या ईश्वर-प्रेम का मार्ग

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय ११ >> अध्याय १३ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/12/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

११.५५ – मत्कर्मकृन् मत्परमो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ५४ श्लोक मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्गवर्जितः।निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स: मामेति पाण्डव।। पद पदार्थ पाण्डव – हे पाण्डुपुत्र!मत् कर्म कृत् – जो मेरी पूजा के अंग के रूप में कर्म में संलग्न हैमत् परम: – मुझे अपने कर्मों का अंतिम लक्ष्य मानकरमत् … Read more

११.५४ – भक्त्या त्वनन्यया शक्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ५३ श्लोक भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन।ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्त्वेन प्रवेष्टुं च परंतप।। पद पदार्थ परंतप! अर्जुन! – हे शत्रुओं को पीड़ा पहुँचाने वाले अर्जुन!अहम् – मैंअनन्यया भक्त्या तु – केवल स्वयं प्रयोजन भक्ति (निस्वार्थ अनन्य भक्ति) के द्वाराएवं विध: – … Read more

११.५३ – नाहं वेदै: न तपसा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ५२ श्लोक नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया।शक्य एवंविधो द्रष्टुं दृष्टवानसि मां यथा।। पद पदार्थ मां यथा दृष्टवान् असि – जिस प्रकार तुमने मुझे देखा हैएवं विध – उस प्रकारअहम् – मैंवेदै: द्रष्टुं न शक्य: – वेदों के द्वारा … Read more

११.५२ – सुदुर्दर्शमिदं रूपं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ५१ श्लोक श्री भगवानुवाचसुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम।देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिणः।। पद पदार्थ श्री भगवानुवाच – श्री भगवान ने कहामम इदं यत् रूपं – मेरा यह रूप जोदृष्टवान् असि – तुमने देखा है(तत्) सुदुर्दर्शं – वह, किसी के लिए भी … Read more

११.५१ – दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ५० श्लोक अर्जुन उवाचदृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तवसौम्यं जनार्दन।इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः।। पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहाजनार्दन – हे जनार्दन!इदं तव सौम्यं मानुषं रूपं – तुम्हारे इस सुंदर मानव रूपदृष्ट्वा – को देखकरइदानीं – अबसचेताः – मेरा … Read more

११.५० – इत्यर्जुनं वासुदेवस् तथोक्त्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ४९ श्लोक सञ्जय उवाच इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः।आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा।। पद पदार्थ सञ्जय उवाच – संजय ने कहाइति – इस प्रकारअर्जुनं – अर्जुन के प्रतिवासुदेव: – कृष्णतथा उक्त्वा – जैसा कि पहले बताया गया हैस्वकं … Read more