१४.७ – रजो रागात्मकं विद्धि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ६ श्लोक रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम्।तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम्।। पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र!रज: – रजो गुणरागात्मकं – (पुरुष और महिला के बीच) इच्छा का कारणतृष्णा सङ्ग समुद्भवम् – शब्द (ध्वनि) आदि पर आधारित सांसारिक सुखों के प्रति इच्छा … Read more

१४.६ – तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ५ श्लोक तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्।सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ।। पद पदार्थ अनघ – हे निर्दोष (अर्जुन)!तत्र – सत्व, रजस और तमस नामक तीन गुणों में सेसत्त्वं – सत्व (अच्छाई)निर्मलत्वात् – चूँकि स्वाभाविक रूप से (आत्मा का ज्ञान और आनंद) बिना छुपाए … Read more

१४.५ – सत्त्वं रजस् तम इति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ४ श्लोक सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसंभवाः।निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्।। पद पदार्थ महाबाहो – हे महाबाहु अर्जुन!सत्त्वं रज: तम: इति गुणाः – सत्व (अच्छाई), रजस (इच्छाएं) और तमस (अज्ञान) नाम के ये तीन गुणप्रकृति संभवाः – हमेशा पदार्थ के साथ … Read more

१४.४ – सर्वयोनिषु कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ३ श्लोक सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः।तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता।। पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र!सर्व योनिषु – सभी जन्मों जैसे देव , मनुष्य, तिर्यक (पशु) और स्थावर (पौधे) मेंयाः मूर्तयः – उन विभिन्न रूपों/शरीरोंसम्भवन्ति – प्रकट हो रहे … Read more

१४.३ – मम योनिर् महद्ब्रह्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २ श्लोक मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन् गर्भं दधाम्यहम्।संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत।। पद पदार्थ भारत – हे भरतकुल के वंशज!योनि: – इस सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति का कारण हैमम – मेरामहत् – महानब्रह्म यत् – मूल प्रकृति (जिसे ब्रह्मं कहा जाता … Read more

१४.२ – इदं ज्ञानमुपाश्रित्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १ श्लोक इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः।सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च।। पद पदार्थ इदं ज्ञानं – इस ज्ञान (जिसे समझाया जाना है)उपाश्रित्य – प्राप्त कर लेते हैंमम साधर्म्यम् – मेरे साथ समानताआगताः – प्राप्त कर लेंगेसर्गे अपि न उपजायन्ते – … Read more

१४.१ – परं भूयः प्रवक्ष्यामि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १३ श्लोक ३४ श्लोक श्री भगवानुवाचपरं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः।। पद पदार्थ श्री भगवानुवाच – भगवान ने कहापरं – जो (पहले बताये हुए ज्ञान से) भिन्न हैभूयः प्रवक्ष्यामि – मैं पुनः (पहले बताये हुए ज्ञान की व्याख्या … Read more

अध्याय १४ – गुणत्रय विभाग योग या तीन गुणों का विषय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय १३ >> अध्याय १५ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/14/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

१३.३४ – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयो: एवं अन्तरं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ३३ श्लोक क्षेत्रक्षेत्रज्ञयो: एवं अन्तरं ज्ञानचक्षुषा।भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्।। पद पदार्थ एवं – जैसा कि इस अध्याय में बताया गया हैक्षेत्र क्षेत्रज्ञयो: अन्तरं – क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) के बीच के अंतरभूत प्रकृति मोक्षं च – अमानित्व … Read more

१३.३३ – यथा प्रकाशयत्येकः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ३२ श्लोक यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः।क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत।। पद पदार्थ भारत – हे भरतवंशी!एक: रविः – सूर्यइमं कृत्स्नं लोकं – सम्पूर्ण जगतयथा प्रकाशयति – जैसे (अपने प्रकाश से) प्रकाशित करता हैतथा – वैसे हीक्षेत्री – शरीरधारी … Read more