१४.७ – रजो रागात्मकं विद्धि
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ६ श्लोक रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम्।तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम्।। पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र!रज: – रजो गुणरागात्मकं – (पुरुष और महिला के बीच) इच्छा का कारणतृष्णा सङ्ग समुद्भवम् – शब्द (ध्वनि) आदि पर आधारित सांसारिक सुखों के प्रति इच्छा … Read more