११.३७ और ११.३७.५ – अनन्त देवेश जगन्निवास
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ३६.५ श्लोक अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्।। त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण: त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्। पद पदार्थ अनन्त – हे तीनों पहलुओं (देश, काल और पदार्थ) से अबद्ध!देवेश – हे देवताओं के स्वामी!जगन्निवास! – हे सर्वव्यापी स्वामी!असत् – आदि पदार्थ … Read more