१३.५ – महाभूतान्यहङ्कारो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ४ श्लोक महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च ​​|इन्द्रियाणि दशैकं  च पञ्च चेन्द्रियगोचरा: || पद पदार्थ महाभूतानि – पाँच महान तत्वअहङ्कार: – भूतादि (जो उन तत्वों का कारण है)बुद्धि: – महान् (जो ऐसे अहङ्कार का कारण है)अव्यक्तम् एव च ​​- मूल प्रकृति (आदि … Read more

१३.४ – ऋषिभि: बहुधा गीतम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ३ श्लोक ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधैः पृथक् |ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितै : || पद पदार्थ (क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के बारे में यह सच्चा ज्ञान जो मैं तुम्हे समझाने जा रहा हूँ ) ऋषिभि : – ऋषियों द्वारा (जैसे पराशर और अन्य)बहुधा – अनेक … Read more

१३.३ – तत् क्षेत्रं यच्च यादृक् च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २ श्लोक तत् क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत् |स च यो यत्प्रभावश्च तत् समासेन मे श्रुणु || पद पदार्थ तत् क्षेत्रम् – वह शरीर जिसे पिछले दो श्लोकों में क्षेत्र के रूप में प्रकाश डाला गया हैयत् च – यह … Read more

१३.२ – क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १ श्लोक क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत |क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम || पद पदार्थ भारत – हे भरत वंश के वंशज!सर्व क्षेत्रेषु – सभी शरीरों में (जैसे कि दिव्य, मानव आदि)क्षेत्रज्ञं च अपि – (जैसे शरीर को क्षेत्र कहा जाता है) आत्मा भी … Read more

१३.१ – इदं शरीरं कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १२ श्लोक २० श्लोक श्री भगवानुवाचइदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रम् इत्यभिधीयते |एतद्यो  वेत्ति  तं प्राहु: क्षेत्रज्ञ इति तद्विद: || पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – श्री भगवान बोलेकौन्तेय – हे अर्जुन!इदं शरीरं – यह शरीरक्षेत्रम् इति – क्षेत्र के रूप में (आत्मा के … Read more

अध्याय १३ – क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग या पदार्थ – आत्मा भेद की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय १२ कृष्ण के मुँह में संसार भगवद् रामानुज आळवार् तिरुनगरी में , श्रीपेरुम्बुदूर् में , श्रीरंगम् में और तिरुनारायणपुरम् में >> अध्याय १४ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/13/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

१२.२० – ये तु धर्म्यामृतम् इदम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १९ श्लोक ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते |श्रद्धधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रिया: || पद पदार्थ ये तु – वे जोधर्म्यामृतम् इदम् – यह भक्ति योग जो प्रापकम् (साधन) और प्राप्यम् (लक्ष्य) हैयथोक्तं – जैसा कि इस अध्याय के दूसरे श्लोक … Read more

१२.१९ – तुल्यनिन्दास्तुति: मौनी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १८ श्लोक तुल्यनिन्दास्तुति: मौनी सन्तुष्टो येन केनचित् |अनिकेत: स्थिरमति: भक्तिमान् मे प्रियो नर: || पद पदार्थ तुल्य निंदा स्तुति: – स्तुति और निंदा के प्रति समान होनामौनी – चुप रहना (जब अन्य लोग उसकी प्रशंसा या निंदा करते हैं)येन केनचित् … Read more

१२.१८ – समः शत्रौ च मित्रे च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १७ श्लोक समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानावमानयो: |शीतोष्णसुखदु:खेषु सम: सङ्गविवर्जित: || पद पदार्थ शत्रौ च मित्रे च सम: – शत्रु और मित्र (जो समीप हैं) के प्रति सम भाव रखनातथा – उसी प्रकारमानावमानयो: (सम:) – वैभव और अपमान … Read more

१२.१७ – यो न हृष्यति न द्वेष्टि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १६ श्लोक यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति |शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान् य: स मे प्रिय: || पद पदार्थ य: न हृष्यति – वह कर्म योग निष्ठ (कर्म योग अभ्यासी) जो (सुखद पहलुओं को देखकर) आनंदित नहीं होतान द्वेष्टि … Read more