३.१७ – यस्त्वात्मरतिरेव स्याद्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १६ श्लोक यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः ।आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं  न विद्यते ॥ पद पदार्थ य: तु मानव: – वह आदमीआत्म रति: एव – केवल आत्मा में लगे रहनाआत्मतृप्त:च (एव) – केवल आत्मा से संतुष्ट होनाआत्मनि एव – आत्मा में हीसन्तुष्ट:- … Read more

३.१६ – एवम् प्रवर्तितम् चक्रम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १५ श्लोक एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः ।अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति ॥ पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!एवं – इस प्रकारप्रवर्तितं  – ऐसे पहलू जो एक दूसरे पर निर्भर हैं (भगवान द्वारा व्यवस्थित)चक्रं – पहिए जैसी कारण-प्रभाव व्यवस्थाइह – जो साधन करने की … Read more

३.१५ – कर्म ब्रह्मोद्भवम् विद्धि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १४ श्लोक कर्म ब्रह्मोद्भवम् विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम् ।तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ॥ पद पदार्थ कर्म – कर्म (धार्मिक कार्य)ब्रह्मोद्भवम् – शरीर से उत्पन्नविद्धि –  जानोब्रह्म – शरीरअक्षरसमुद्भवम् – जीवात्मा से उत्पन्नतस्मात् – इस प्रकारसर्वगतं  – वह जो सभी के लिए उपस्थित हैब्रह्म … Read more

३.१४ – अन्नाद् भवन्ति भूतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १३ श्लोक अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः ।यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञ : कर्मसमुद्भवः ॥ पद पदार्थ अन्नाद् – भोजन सेभूतानि – देव , मनुष्य  आदि सभी प्राणीभवन्ति – निर्मित;पर्जन्यात्- वर्षा सेअन्न संभव: (भवति) – भोजन का उत्पादन होता हैयज्ञात् – यज्ञ सेपर्जन्य – वर्षाभवति … Read more

३.१३ – यज्ञ शिष्टाशिनः सन्तो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १२ श्लोक यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः ।भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात् ॥ पद पदार्थ यज्ञ शिष्टाशिनः – जो लोग यज्ञ  के अवशेष (जो भगवान की पूजा का हिस्सा है) को खाते हैंसन्त:- अच्छे लोगसर्वकिल्बिषैः – सभी पाप (जो आत्मप्राप्ति में … Read more

३.१२ – इष्टान् भोगान् हि वो देवा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ११ श्लोक इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः ।तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो  भुङ्क्ते स्तेन एव सः ॥ पद पदार्थ यज्ञ भाविता: देवा: –  यज्ञों द्वारा पूजित देवता व:- तुम्हे इष्टान् – जो आवश्यक है (बाद में उनकी पूजा के लिए)भोगान् – उपयोग किये  जाने वाले  सामग्रीदास्यन्ते … Read more

३.११ – देवान् भावयतानेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १० श्लोक देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः ।परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ॥ पद पदार्थ अनेन  – इस यज्ञ सेदेवता – ये देवतावों का (जो मुझे अपने अन्तर्यामी के रूप में मानते हैं)भावयता  – पूजा करोते देवा  – ऐसे देवता (जिनकी इस … Read more

३.१० – सहयज्ञै: प्रजाः सृष्ट्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ९ श्लोक  सहयज्ञै : प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः ।अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोSस्त्विष्टकामधुक् ॥ पद पदार्थ प्रजापति – परमात्मा जो सर्वेश्वर हैंपुरा  – सृष्टि के आरंभ मेंयज्ञै: सह – यज्ञ के साथ  ( उनके पूजा के संकल्प में )प्रजा:- जीवसृष्ट्वा – निर्मितउवाच … Read more

३.९ – यज्ञार्थात् कर्मणोSन्यत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ८ श्लोक यज्ञार्थात्कर्मणोSन्यत्र लोकोSयं कर्मबन्धनः ।तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्ग: समाचर ॥ पद पदार्थ यज्ञार्थ कर्मण: अन्यत्र – केवल तब जब यज्ञ के लिए किए गए कार्यों के अलावा अन्य कार्यों में संलग्न होअयं लोक:- यह संसारकर्म बंधन:- कर्म से बंधा जाता है(इस प्रकार)हे … Read more

३.८ – नियतम् कुरु कर्म त्वम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ७ श्लोक नियतं  कुरु कर्म त्वम् कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः ।शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्येदकर्मणः ॥ पद पदार्थ नियतं- जो अनादि काल से आदत बन गई होकर्म – कर्म योगत्वं – तुम कुरु – कर रहे हो हि  – क्योंकिकर्म – कर्म योगज्याय: … Read more