११.४ – मन्यसे यदि तच्छक्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ३ श्लोक मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो |योगेश्वर ततो  मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम् || पद पदार्थ योगेश्वर – हे शुभ गुणों वाले!प्रभो – हे सर्वेश्वर! (सभी के भगवान)तत् – तुम्हारा स्वरूपमया – मेरे द्वाराद्रष्टुम् शक्यम् इति – देखा जा सकता … Read more

११. ३ – एवम् एतद्यथाऽऽत्थ 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक २ श्लोक एवमेतद्यथाऽऽत्थ त्वम् आत्मानं परमेश्वर |द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं  पुरुषोत्तम || पद पदार्थ परमेश्वर – हे सर्वेश्वर! (सभी के भगवान)पुरुषोत्तम – हे पुरुषोत्तम! (सभी में सबसे महान)यथा त्वं आत्मानं आत्थ – जिस प्रकार तुमने अपने बारे में समझायाएवम् एतत् -जो … Read more

११.२ – भवाप्ययौ हि भूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक १ श्लोक भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो  मया |त्वत्त : कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम् | पद पदार्थ कमल पत्राक्ष – हे कमल के पंखुड़ी जैसी आँखों वाले भगवान!त्वत्त – तुमसे (जो परमात्मा हैं) (अस्तित्व में आना)भूतानां – सभी पहलुएँभवाप्ययौ- सृजन और … Read more

११.१ – मदनुग्रहाय परमम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय १० श्लोक ४२ श्लोक अर्जुन उवाच मदनुग्रहाय परमं गुह्यं अध्यात्मसंज्ञितम् |यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ||  पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहामदनुग्रहाय – मुझ पर दयालुतापूर्वकपरमं गुह्यं- अत्यंत गुप्तअध्यात्म संज्ञितं वच: – निर्देश (पहले छह अध्यायों में) जिसमें आत्मा के … Read more

अध्याय ११ – विश्वरूप संदर्शन योग या ब्रह्माण्डीय दृष्टि की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय १० भगवद् रामानुज आळवार् तिरुनगरी में , श्रीपेरुम्बुदूर् में , श्रीरंगम् में और तिरुनारायणपुरम् में >> अध्याय १२ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/11/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

९.१७ – पिताऽहम् अस्य जगतो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक १६ श्लोक पिताऽहमस्य जगतो माता धाता पितामह: |वेद्यं पवित्रं ओंकार ऋक् साम यजुरेव च ​​|| पद पदार्थ अस्य जगत: – इन जीवों के लिए [दुनिया के]पिता – पिता माता – माताधाता – (दूसरा) चेतन (संवेदनशील जीव ) जो सृजन में मदद … Read more

९.१६ – अहं क्रतु: अहं यज्ञ:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक १५ श्लोक अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम् |मन्त्रोऽहमहमेवाज्यम् अहं अग्नि: अहं हुतम् || पद पदार्थ अहं – मैं क्रतु: – यज्ञ ( जैसे ज्योतिष्टोमं आदि)अहं यज्ञ – मैं पंच महायज्ञ हूँअहं स्वधा – मैं स्वधा हूँ (जो पित्रुओं (पूर्वजों) को शक्ति … Read more

९.१५ – ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक १४ श्लोक ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते |एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् || पद पदार्थ अन्ये अपि – कुछ अन्य महात्माओंज्ञान यज्ञेन च – (पहले बताए गए कीर्तन आदि के साथ) ज्ञान का यज्ञयजन्त: – पूजाबहुधा पृथक्त्वेन – इस दुनिया की कई … Read more

९.१४ – सततं कीर्तयन्तो माम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक १३ श्लोक सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रता: |नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते || पद पदार्थ मां – मेरेभक्त्या – भक्ति के साथसततं – सदैवकीर्तयन्त:- गायन में लगे रहनादृढ व्रता: – दृढ़ निश्चय के साथयतन्त: च – प्रयास करना (मेरी पूजा … Read more

९.१३ – महात्मानस् तु माम् पार्थ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक १२ श्लोक महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिता : |भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम् || पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!दैवीं प्रकृतिं आश्रिता: – जिन्होंने दिव्य स्वभाव प्राप्त कर लिया हैमहात्मान: तु – ज्ञानी, जो महान आत्माएँ हैंमां – मुझेभूतादिं – सभी वस्तुओं … Read more