६.४३ – तत्र तम् बुद्दि संयोगम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४२ श्लोक तत्र तं  बुद्धिसंयोगं  लभते पौर्वदैहिकम् ।यतते च ततो भूयः संसिद्धौ  कुरुनन्दन ॥ पद पदार्थ तत्र – उन जन्मों मेंपौर्वदैहिकं – पिछले जन्म सेतं बुद्धि संयोगं – बुद्धि (योग से संबंधित)लभते – प्राप्त करता हैकुरु नन्दन – हे कुरु … Read more

६.४२ – अथवा योगिनामेव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४१ श्लोक अथवा योगिनामेव कुले महति [भवति] धीमताम् ।एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥ पद पदार्थ अथवा – वैकल्पिक रूप से (यदि वह योग अभ्यास में अच्छी तरह से उन्नत होने के बाद फिसल गया)धीमताम् – बहुत बुद्धिमानयोगिनां येव – … Read more

६.४१ – प्राप्य पुण्यकृताम् लोकान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४० श्लोक प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः ।शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥ पद पदार्थ योगभ्रष्टा: – जो योगाभ्यास शुरू करने के बाद फिसल गया/लड़खड़ा गया (ऐसे योग की महिमा से)पुण्यकृतांलोकान् प्राप्य: – उस परमलोक को प्राप्त करता है जहाँ अत्यंत … Read more

६.४० – पार्थ नैवेह नामुत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३९ श्लोक श्री भगवान उवाचपार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते ।न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥ पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – श्री कृष्ण बोलेपार्थ – हे कुन्तीपुत्र!तस्य – उस व्यक्ति के लिए जिसने योग करना शुरू किया, लेकिन बाद में … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्त्व – अध्याय ६ (अभ्यास योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना <<अध्याय ५ गीतार्थ संग्रह के दसवें श्लोक में, आळवन्दार् छठे अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “छठे अध्याय में योग का अभ्यास करने की विधि (जो आत्मसाक्षर –  आत्मबोध की ओर ले जाती है), चार प्रकार के योगी , व्यायाम् , … Read more

६.३९ – एतन् मे संशयं कृष्ण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३८ श्लोक एतन्मे संशयं कृष्ण चेत्तुमर्हस्यशेषतः ।त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते ॥ पद पदार्थ कृष्ण – हे कृष्ण!मे – मेरेएतन् संशयम्-यह संदेहअशेषतः – पूरी तरहचेत्तुम् अर्हसि – कृपया निवारण करें;अस्य संशयस्य छेत्ता – जो इस संदेह को दूर कर सकता … Read more

६.३८ – कच्चिन् नोभय विभ्रष्टश्चिन्नाभ्रमिव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३७ श्लोक कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्चिन्नाभ्रमिव नश्यति ।अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि ॥ पद पदार्थ महाबाहो – हे शक्तिशाली भुजाओं वाले!ब्राह्मण: पथि विमूढा : – ब्रह्म प्राप्ति के योग (कर्म योग के मार्ग) से कट जानाअप्रतिष्ठा:- निश्चित नहीं (स्वर्ग जैसे लक्ष्यों तक पहुँचना … Read more

६.३७ – अयति: श्रद्धयोपेतो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३६ श्लोक अर्जुन उवाचअयति: श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः ।अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति ॥ पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन पूछता हैकृष्ण – हे कृष्ण ! श्रद्धया – निष्ठापूर्वकउपेत: – जिन्होंने योगाभ्यास शुरू कियाअयति: – प्रयासों की कमी (दृढ़ योग अभ्यास में)(उसी के परिणाम स्वरूप)योग संसिद्धिं … Read more

६.३६ – असंयतात्मना योगो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३५ श्लोक असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः ।वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः ॥ पद पदार्थ असंयतात्मना – जो अपने मन को नियंत्रित नहीं कर सकतायोग:- योग (समदृष्टि रखने का)दुष्प्राप:- प्राप्त करना कठिन हैइति – ऐसामे मति: – मेरा निष्कर्ष हैतु … Read more

६.३५ – असंशयं महाबाहो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३४ श्लोक श्री भगवान् उवाचअसंशयं  महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥ पद पदार्थ श्री भगवान् उवाच – श्री भगवान बोले महाबाहो – हे शक्तिशाली भुजाओं वालेकौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!चलं मन – अस्थिर मनदुर्निग्रहं – नियंत्रित करना … Read more