४.४० – अज्ञश् चाश्रद्दधानश् च
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३९ श्लोक अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति ।नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः ॥ पद पदार्थ अज्ञ: च – जो आत्म ज्ञान (जिसे विद्वानों के निर्देशों द्वारा प्राप्त किया जाता है) से रहित है अश्रद्दधान: – जिसकी रुचि नहीं है (ऐसे साधनों … Read more