७.७ – मयि सर्वम् इदं प्रोतम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ६.५ श्लोक मयि सर्वमिदं प्रोतं  सूत्रे मणिगणा इव ॥ पद पदार्थ इदं सर्वं – ये सभी सत्ताएंसूत्रे – एक डोरी  परमणिगणा इव – जैसे रत्न जड़े हुएमयि प्रोतं – मुझ पर आश्रित सरल अनुवाद जैसे  एक डोरी में रत्न जड़े … Read more

७.६ – एतद्योनीनि भूतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ५ श्लोक एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय ।अहं  कृत्स्नस्य  जगतः प्रभवः प्रळयस्तथा ॥ पद पदार्थ एतद्योनीनि – चेतन और अचेतन के इस संग्रह का कारण के रूप में होनासर्वाणि भूतानि – सभी सत्ताएं (ब्रह्मा से लेकर घास के एक तिनके तक)इति – … Read more

७.५ – अपरेयं इतस् त्वन्याम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ४ श्लोक अपरेयमितस्त्वन्यां  प्रकृतिं  विद्धि मे पराम् ।जीवभूतां  महाबाहो ययेदं  धार्यते जगत् ॥ पद पदार्थ महाबाहो – हे शक्तिशाली भुजाओं वाले!इयं – यह भौतिक प्रकृति जो अचेतन हैअपरा – हीन है;इत: – इससेअन्यां तु – भिन्नजीवभूतां – जिसे जीव कहा … Read more

७.४ – भूमि: आपोऽनलो वायुः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ३ श्लोक भूमिरापोऽनलो वायुः खं  मनो बुद्धिरेव  च ।अहङ्कार  इतीयं  मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥ पद पदार्थ (ये पांच महान तत्व)भूमि: -पृथ्वीआप: – पानीअनल: -अग्निवायु: – हवाखं – आकाशमन: – मन (और अन्य इंद्रियाँ)बुद्धि: – महान (महान तत्व)अहङ्कार: च – और … Read more

७.३ – मनुष्याणां सहस्रेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २ श्लोक मनुष्याणां  सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्वतः ॥ पद पदार्थ मनुष्याणां – उन लोगों में से जो शास्त्र सीखने के योग्य हैंसहस्रेषु – हजारों के बीचकश्चित – केवल एकसिद्धये यतति – मुक्ति प्राप्त होने तक लगातार … Read more

७.२ – ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १ श्लोक ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः ।यज्ज्ञात्वा नेह भूयोन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ॥ पद पदार्थ अहं – मैंवे- तुम्हेंइदं ज्ञानं – यह ज्ञान (मेरे बारे में)सविज्ञानं – महान/विशेष ज्ञान के साथअशेषतः – पूरी तरहवक्ष्यामि – समझाते हुए;यत् – वह ज्ञानभूय: – फिरज्ञातव्यं – जो ज्ञात … Read more

७.१ – मय्यासक्तमनाः पार्थ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ६ श्लोक ४७ श्लोक श्री भगवान् उवाचमय्यासक्तमनाः पार्थ योगं  युञ्जन्मदाश्रय : ।असंशयं  समग्रं  मां  यथा  ज्ञास्यसि तच्छृणु  ॥ पद पदार्थ श्री भगवान् उवाच – भगवान श्रीकृष्ण ने कहापार्थ – हे कुन्तीपुत्र!मयि – मुझमेंआसक्तमना:- अत्यंत आसक्त मन सेमद्राश्रय: – मुझ पर आश्रय  करते … Read more

अध्याय ७ – विज्ञान योग (या ) सर्वोच्च बुद्धि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय ६ नम्माळ्वार भगवद् रामानुज आळवार् तिरुनगरी में , श्रीपेरुम्बुदूर् में , श्रीरंगम् में और तिरुनारायणपुरम् में >>अध्याय ८ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/7/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

६.४७ – योगिनामपि सर्वेषाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४६ श्लोक योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना ।श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ॥ पद पदार्थ योगिनां – पहले बताए गए योगियों से भी महानअपि सर्वेषां – और अन्य सभी जैसे तपस्वियोंमद्गतेन अंतरात्मना – मुझमें लगे मन सेश्रद्धावान् – इच्छा रखना … Read more

६.४६ – तपस्विभ्योऽधिको योगी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४५ श्लोक तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः।कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ॥           पद पदार्थ योगी – योग अभ्यासीतपस्विभ्य: अधिक: (मत: ) – उन लोगों से भी बड़ा माना जाता है जो केवल तपस्या में लगे रहते हैं;(योगी … Read more