శ్రీ భగవత్ గీతా సారం – అధ్యాయం 16 (దైవాసుర సంపత్ విభాగ యోగం)

శ్రీః  శ్రీమతే శఠకోపాయ నమః  శ్రీమతే రామానుజాయ నమః  శ్రీమత్ వరవరమునయే నమః శ్రీ భగవద్ గీతా సారం << అధ్యాయం 15 గీతార్థ సంగ్రహం లోని 20వ శ్లోకం లో, ఆళవందార్లు పదహారవ అధ్యాయం యొక్క సారాంశం వివరిస్తూ,పదహారవ అధ్యాయంలో – (మానవులలో) దేవ (సాధువు) మరియు అసుర (క్రూరమైన) వర్గీకరణను వివరించిన తర్వాత ,(సాధించవలసిన) సత్యమైన జ్ఞానాన్ని మరియు (లక్ష్యాన్ని సాధించే) ప్రక్రియ యొక్క సాధనను స్థాపించడానికి, (మానవులు) శాస్త్రంతో బంధించబడ్డారనే సత్యాన్ని చెప్పబడింది”. … Read more

१६.२४ – तस्माच् चास्त्रं प्रमाणं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक २३ श्लोक तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ |ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि  || पद पदार्थ तस्मात् – इस प्रकारते – तुम्हारे लिएकार्या कार्य व्यवस्थितौ – यह निर्धारित करने के लिए कि क्या करना है और क्या त्यागना हैशास्त्रं – वेद ही एकमात्र … Read more

१६.२३ – यः शास्त्रविधिम् उत्सृज्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक २२ श्लोक य: शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारत : |न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां  गतिम् || पद पदार्थ य:- जोशास्त्र विधिम् – वेद जो मेरा आदेश हैउत्सृज्य – त्यागकरकाम कारत: वर्तते – अपनी इच्छा से कार्य करनास:- वहसिद्धिम् – परलोक … Read more

१६.२२ – एतैर् विमुक्तः कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक २१ श्लोक एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नर: |आचरत्यात्मन: श्रेयस्ततो याति परां गतिम्  || पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!तमो द्वारै: – अंधकार के कारण हैं (अर्थात, मेरे बारे में मिथ्याबोध )एतै: त्रिभि: – इन तीनों से – वासना, क्रोध और लोभविमुक्त: … Read more

१६.२१ – त्रिविधं नरकस्यैतद्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक २० श्लोक त्रिविधं नरकस्यैतद् द्वारं नाशनमात्मन: |काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् || पद पदार्थ काम: – वासनाक्रोध: – क्रोधतथा लोभ: – लोभएतत् – ये नरकस्य – आसुरी प्रकृति के नरकआत्मान: नाशनं – आत्मा को नष्ट करने केत्रिविधं द्वारं – तीन प्रकार … Read more

१६.२० – आसुरीं योनिम् आपन्ना

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १९ श्लोक आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि |मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम् || पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!असुरीं योनिम् आपन्ना: – (जैसा कि पिछले श्लोक में बताया गया है)राक्षसी योनि प्राप्त कर चुके ये लोग,जन्मनि जन्मनि – आने वाले जन्मों मेंमूढा – … Read more

१६.१९ – तान् अहं द्विशत: क्रूरान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १८ श्लोक तानहं  द्विषतः क्रूरान्  संसारेषु नराधमान् |क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु || पद पदार्थ द्विषत: – मेरे प्रति द्वेष रखते हैं (जैसा कि पहले बताया गया है)क्रूरान् – क्रूर हैंनराधमान् – मनुष्यों में नीच हैंअशुभान् – अशुभ हैंतान् – वे (राक्षसी लोग)अहं – … Read more

१६.१८ – अहंकारं बलं दर्पं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १७ श्लोक अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिता: |मामात्मपरदेहेषु  प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः || पद पदार्थ अहंकारं – अहंकार (यह सोचना कि सब कुछ अपने क्षमता पर पूरा किया जा सकता है)बलं – (कि मेरी क्षमता सब कुछ प्राप्त करने के लिए … Read more

१६.१७ – आत्मसम्भाविता: स्तब्धा:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १६ श्लोक आत्मसम्भाविता: स्तब्धा: धनमानमदान्विता: |यजन्ते नामयज्ञैस्ते  दम्भेनाविधिपूर्वकम् || पद पदार्थ आत्म सम्भाविता: – स्वयं की प्रशंसा करनास्तब्धा:- (ऐसी आत्मप्रशंसा के कारण) घमंड से भरेधनमान मदन्विता: – धन, ज्ञान, पारिवारिक विरासत के कारण उत्पन्न होने वाला अभिमान रखनाते – वे … Read more

१६.१६ – अनेकचित्तविभ्रान्ता

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १५ श्लोक अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृता : |प्रसक्ता : कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ || पद पदार्थ अनेक चित्त विभ्रान्ता: – विभिन्न विचारों से परेशान होकरमोहजाल समावृता: – विभिन्न भ्रांतियों से घेरकरकाम भोगेषु – कामुक सुखों मेंप्रसक्ता: – गहराई से संलग्न रहकर (ऐसी स्थिति … Read more