५.२० – न प्रहृष्येत् प्रियं प्राप्य
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक १९ श्लोक न प्रहृष्येत् प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् |स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थित: || पद पदार्थ स्थिर बुद्धि: – शाश्वत आत्मा में ध्यान केंद्रितअसम्मूढ: – इस अस्थायी शरीर को आत्मा समझ, न मोहित होकरब्रह्मविद् – ( आचार्यों के निर्देशों से ) … Read more