श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय ९ (राजविद्या राजगुह्य योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय ८ गीतार्थ संग्रह के तेरहवें श्लोक में स्वामी आळवन्दार नौवें अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “ नौवें अध्याय में उनकी अपनी महानता, उनका मानव रूप में भी सर्वोच्च होना, उन ज्ञानियों की महानता जो महात्मा हैं (इनके साथ) … Read more

९.३४ – मन्मना भव मद्भक्त:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३३ श्लोक मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: || पद पदार्थ मन्मना भव – अपना मन निरन्तर मुझमें स्थिर करोमद्भक्ता भव – (और भी ) मेरे प्रति अधिक प्रेम रखोमद्याजी भव – (और भी ) मेरी पूजा … Read more

९.३३ – किं पुन: ब्राह्मणा: पुण्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३२ श्लोक किं पुनर्ब्राह्मणा: पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा |अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् || पद पदार्थ पुण्या: – पूर्व पुण्य कर्मों के कारण ऐसा जन्म हुआ हैब्राह्मणा: – ब्राह्मण (पुरोहित वर्ग )राजर्षय तथा – राजर्षि ( राजसी साधु )भक्ता: – यदि … Read more

९.३२ – मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३१ श्लोक मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु: पापयोनय: |स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् || पद पदार्थ पार्थ – हे कुंतीपुत्र !स्त्रिय: – औरतवैश्या – वैश्य ( व्यापारी वर्ग )तथा शूद्रा: – क्षूद्र ( श्रमिक वर्ग ) आदि भीपापयोनय … Read more

९.३१ – क्षिप्रं भवति धर्मात्मा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३० श्लोक क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति |कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति || पद पदार्थ (यद्यपि जो मेरी भक्ति में लगा है, उसका आचरण बुरा हो )क्षिप्रं – शीघ्र हीधर्मात्मा भवति – वह ( अपनी बाधाओं को दूर करके … Read more

९.३० – अपि चेत् सुदुराचारो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २९ श्लोक अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् |साधुरेव स मन्तव्य: सम्यग्व्यवसितो हि स: || पद पदार्थ सु दुराचार अपि – भले ही किसी के लक्षण/आचरण बहुत ही निम्न होमां – मुझ परअनन्यभाक् – बिना किसी अन्य लाभ की इच्छा केभजते चेत् … Read more

९.२९ – समोऽहं सर्वभूतेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २८ श्लोक समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रिय: |ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् || पद पदार्थ अहं – मैंसर्वभूतेषु – विभिन्न प्रजातियों के सभी प्राणियों के लिएसम: – समान (जो कोई मेरी शरण लेना चाहता … Read more

९.२८ – शुभाशुभफलै: एवं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २७ श्लोक शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनै: |संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि || पद पदार्थ एवं – इस प्रकारसंन्यास योग युक्तात्मा – संन्यास योग ( जैसे पहले बताया गया है, सभी कार्यों को मुझे समर्पित करना ) में लगे दिल से कर्म में संलग्न … Read more

९.२७ – यत्करोषि यदश्नासि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २६ श्लोक यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् |यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् || पद पदार्थ कौन्तेय – हे कंतीपुत्र !यत् करोषि – तुम (अपनी आजीविका के लिए) जो भी सांसारिक गतिविधियाँ करते होयत् अश्नासि – (इस दुनिया में जीवित रहने के … Read more

९.२६ – पत्रं पुष्पं फलं तोयम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २५ श्लोक पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति |तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन: || पद पदार्थ य: – वह जोपत्रं – पत्तापुष्पं – फूलफलं – फलतोयं – पानीमे – मुझेभक्त्या – प्रेम सेप्रयच्छति – समर्पण करता हैप्रयतात्मन: – उस पवित्र … Read more