శ్రీ భగవత్ గీతా సారం – అధ్యాయం 9 (రాజ విద్యా రాజ గుహ్య యోగం)

శ్రీః  శ్రీమతే శఠకోపాయ నమః  శ్రీమతే రామానుజాయ నమః  శ్రీమత్ వరవరమునయే నమః శ్రీ భగవద్ గీతా సారం << అధ్యాయం 8 గీతార్థ సంగ్రహం లోని 13వ శ్లోకం లో, ఆళవందార్లు తొమ్మిదవ అధ్యాయం యొక్క సారాంశం వివరిస్తూ “తొమ్మిదవ అధ్యాయం లో, తన వైభవం, తను మానవ రూపం లో ఉన్నాకూడా ఉన్నతుడు, మహాత్ములు అయిన జ్ఞానుల యొక్క వైభవం (వీటితో పాటు) మరియు భక్తియోగం అనే ఉపాసన చక్కగా వివరించారు”. ముఖ్యమైన శ్లోకాలు … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय ९ (राजविद्या राजगुह्य योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय ८ गीतार्थ संग्रह के तेरहवें श्लोक में स्वामी आळवन्दार नौवें अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “ नौवें अध्याय में उनकी अपनी महानता, उनका मानव रूप में भी सर्वोच्च होना, उन ज्ञानियों की महानता जो महात्मा हैं (इनके साथ) … Read more

९.३४ – मन्मना भव मद्भक्त:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३३ श्लोक मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: || पद पदार्थ मन्मना भव – अपना मन निरन्तर मुझमें स्थिर करोमद्भक्ता भव – (और भी ) मेरे प्रति अधिक प्रेम रखोमद्याजी भव – (और भी ) मेरी पूजा … Read more

९.३३ – किं पुन: ब्राह्मणा: पुण्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३२ श्लोक किं पुनर्ब्राह्मणा: पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा |अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् || पद पदार्थ पुण्या: – पूर्व पुण्य कर्मों के कारण ऐसा जन्म हुआ हैब्राह्मणा: – ब्राह्मण (पुरोहित वर्ग )राजर्षय तथा – राजर्षि ( राजसी साधु )भक्ता: – यदि … Read more

९.३२ – मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३१ श्लोक मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु: पापयोनय: |स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् || पद पदार्थ पार्थ – हे कुंतीपुत्र !स्त्रिय: – औरतवैश्या – वैश्य ( व्यापारी वर्ग )तथा शूद्रा: – क्षूद्र ( श्रमिक वर्ग ) आदि भीपापयोनय … Read more

९.३१ – क्षिप्रं भवति धर्मात्मा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३० श्लोक क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति |कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति || पद पदार्थ (यद्यपि जो मेरी भक्ति में लगा है, उसका आचरण बुरा हो )क्षिप्रं – शीघ्र हीधर्मात्मा भवति – वह ( अपनी बाधाओं को दूर करके … Read more

९.३० – अपि चेत् सुदुराचारो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २९ श्लोक अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् |साधुरेव स मन्तव्य: सम्यग्व्यवसितो हि स: || पद पदार्थ सु दुराचार अपि – भले ही किसी के लक्षण/आचरण बहुत ही निम्न होमां – मुझ परअनन्यभाक् – बिना किसी अन्य लाभ की इच्छा केभजते चेत् … Read more

९.२९ – समोऽहं सर्वभूतेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २८ श्लोक समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रिय: |ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् || पद पदार्थ अहं – मैंसर्वभूतेषु – विभिन्न प्रजातियों के सभी प्राणियों के लिएसम: – समान (जो कोई मेरी शरण लेना चाहता … Read more

९.२८ – शुभाशुभफलै: एवं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २७ श्लोक शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनै: |संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि || पद पदार्थ एवं – इस प्रकारसंन्यास योग युक्तात्मा – संन्यास योग ( जैसे पहले बताया गया है, सभी कार्यों को मुझे समर्पित करना ) में लगे दिल से कर्म में संलग्न … Read more

९.२७ – यत्करोषि यदश्नासि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २६ श्लोक यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् |यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् || पद पदार्थ कौन्तेय – हे कंतीपुत्र !यत् करोषि – तुम (अपनी आजीविका के लिए) जो भी सांसारिक गतिविधियाँ करते होयत् अश्नासि – (इस दुनिया में जीवित रहने के … Read more