९.२५ – यान्ति देवव्रता देवान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २४ श्लोक यान्ति देवव्रता देवान्पितॄन्यान्ति पितृव्रता: |भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् || पद पदार्थ देवव्रता – जिन्होंने प्रतिज्ञा की है कि,” हम देवताओं ( जैसे इन्द्र आदि ) के प्रति यज्ञ करेंगे “देवान् – देवताओं तकयान्ति – पहुँचते हैं … Read more

९.२३ – ये त्वन्यदेवताभक्ता

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २२ श्लोक ये त्वन्यदेवताभक्ता यजन्ते श्रद्धयाऽन्विता: |तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् || पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुंतीपुत्र !ये तु – जो लोगअन्य देवता भक्ता – अन्य देवताओं ( जैसे इंद्र , रुद्र, ब्रह्मा इत्यादि ) के प्रति श्रद्धा रखते हैंश्रद्धया … Read more

९.२२ – अनन्या: चिन्तयन्तो माम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २१ श्लोक अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते |तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् || पद पदार्थ अनन्या : – बिना किसी अन्य लक्ष्य के ( मेरे बारे में सोचने के अलावा )मां चिन्तयन्त: – मेरे बारे में सोचते हैंये जना: – उन … Read more

९.२१ – ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २० श्लोक ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति |एवं त्रयीधर्मम् अनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते || पद पदार्थ ते – वेविशालं – विस्तृततं स्वर्गलोकं – स्वर्ग लोक के सुखोंभुक्त्वा – आनंदपुण्ये क्षीणे – जो पुण्य संचित थे, उन्हें … Read more

९.२० – त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक १९ श्लोक त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा :यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते |ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोकम् अश्नन्ति दिव्यान् दिवि देवभोगान् || पद पदार्थ त्रै विद्या – तीन वेदों में बताए गए कर्मों में लीन ( मगर वेदांत में नहीं )सोमपा: – जो सोम रस … Read more

९.२४ – अहं हि सर्वयज्ञानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २३ श्लोक अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च | न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते || पद पदार्थ अहम् एव हि – केवल मैं हीसर्व यज्ञानां – समस्त यज्ञों काभोक्ता च – भोक्ता हूँप्रभु च – दाता हूँमां – ( … Read more

९.१९ – तपाम्यहम् अहं वर्षम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक १८ श्लोक तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च |अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन || पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन !अहं – मैंतपामि – गर्मी देता हूँ ( अग्नि , सूर्य आदि को मेरे शरीर के रूप में हैं )अहं – मैंवर्षं निगृह्णामि … Read more

९.१८ – गतिर्भर्ता प्रभु: साक्षी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक १७ श्लोक गतिर्भर्ता प्रभु: साक्षी निवास: शरणं सुहृत् |प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम् || पद पदार्थ (अस्य जगत – इस संसार के निवासियों के लिए )गति – लक्ष्यभर्ता – चेतन ( संवेदनशील ) जो आधार हैप्रभु – चेतन जो नियंत्रण … Read more

९.१७ – पिताऽहम् अस्य जगतो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक १६ श्लोक पिताऽहमस्य जगतो माता धाता पितामह: |वेद्यं पवित्रं ओंकार ऋक् साम यजुरेव च ​​|| पद पदार्थ अस्य जगत: – इन जीवों के लिए [दुनिया के]पिता – पिता माता – माताधाता – (दूसरा) चेतन (संवेदनशील जीव ) जो सृजन में मदद … Read more

९.१६ – अहं क्रतु: अहं यज्ञ:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक १५ श्लोक अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम् |मन्त्रोऽहमहमेवाज्यम् अहं अग्नि: अहं हुतम् || पद पदार्थ अहं – मैं क्रतु: – यज्ञ ( जैसे ज्योतिष्टोमं आदि)अहं यज्ञ – मैं पंच महायज्ञ हूँअहं स्वधा – मैं स्वधा हूँ (जो पित्रुओं (पूर्वजों) को शक्ति … Read more