९.५ – न च मत्स्थानि भूतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ४ श्लोक न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम् |भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावन: || पद पदार्थ मत्स्थानि न च – वे मुझमें नहीं हैं (जैसे पानी को घड़े आदि के सहारे रखा जाता है ,लेकिन वे मेरी इच्छा से … Read more

९.४ – मया ततम् इदं सर्वम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३ श्लोक मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना |मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः || पद पदार्थ इदं सर्वं जगत् – ये सभी संसार (जो चेतन (संवेदनशील वस्तु ) और अचेतन (असंवेदनशील वस्तु) से बने हैं)अव्यक्त मूर्तिना मया – मेरे अन्तर्यामी रूप से … Read more

९.३ – अश्रद्धधानाः पुरुषा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २ श्लोक अश्रद्धधाना: पुरुषा धर्मस्यास्य  परन्तप  |अप्राप्य मां  निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि || पद पदार्थ परन्तप – हे शत्रुओं को पीडित करने वाले!अस्य धर्मस्य अश्रद्धधाना: पुरुषा – जो लोग भक्ति योग की इस प्रक्रिया में विश्वासहीन हैंमां – मुझे अप्राप्य – प्राप्त किये … Read more

९.२ – राजविद्या राजगुह्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक १ श्लोक राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् |प्रत्यक्षावगमं  धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् || पद पदार्थ इदम् – यह भक्ति योगराज विद्या – विद्याओं में सर्वश्रेष्ठ (ज्ञान/मार्ग)राज गुह्यम् – रहस्यों में सर्वश्रेष्ठउत्तमं पवित्रं – पापों को दूर करने वालों में सर्वश्रेष्ठप्रत्यक्षावगमं – वह जो … Read more

९.१ – इदं तु ते गुह्यतमम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ श्लोक श्री भगवान उवाचइदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे |ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् || पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – श्री भगवान बोलेयत् ज्ञात्वा – जिसे जानकरअशुभात् मोक्ष्यसे – सभी पुण्य/पाप (गुण/अवगुण) से मुक्ति (जो तुम्हे मुझे प्राप्त करने से रोकते हैं)इदं गुह्य तमं ज्ञानं … Read more

अध्याय ९ – राजविद्या राजगुह्य योग या राजकीय  बुद्धि और राजकीय रहस्य की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः <<अध्याय ८ कृष्ण के मुख में विश्व भगवद् रामानुज आळवार् तिरुनगरी में , श्रीपेरुम्बुदूर् में , श्रीरंगम् में और तिरुनारायणपुरम् में >>अध्याय १० आधार – http://githa.koyil.org/index.php/9/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் – அத்யாயம் 9 (ராஜ வித்யா ராஜ குஹ்ய யோகம்)

ஸ்ரீ:  ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம:  ஸ்ரீமதே ராமாநுஜாய நம:  ஸ்ரீமத் வரவரமுநயே நம: ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் << அத்யாயம் 8 கீதார்த்த ஸங்க்ரஹம் பதின்மூன்றாம் ச்லோகத்தில், ஆளவந்தார் ஒன்பதாம் அத்யாயத்தின் கருத்தை, “ஒன்பதாம் அத்தியாயத்தில், அவனுடைய தனிப் பெருமை, மனித உருவத்தில் இருந்தாலும் உயர்ந்தவனாக இருப்பது, மஹாத்மாக்களான அந்த ஞானிகளின் பெருமை மற்றும் உபாஸனம் என்று அழைக்கப்படும் பக்தி யோகம் ஆகியவை நன்கு விளக்கப்பட்டுள்ளன” என்று காட்டுகிறார். முக்கிய ச்லோகங்கள் ச்லோகம் 1 ஶ்ரீப⁴க³வானுவாச … Read more

Essence of SrI bhagavath gIthA – Chapter 9 (rAja vidhyA rAja guhya yOga)

SrI:  SrImathE SatakOpAya nama:  SrImathE rAmAnujAya nama:  SrImath varavaramunayE nama: Essence of SrI bhagavath gIthA << Chapter 8 In the thirteenth SlOkam of gIthArtha sangraham, ALavandhAr explains the summary of ninth chapter saying “In the ninth chapter, his own greatness, he being supreme even in human form, the greatness of those gyAnis who are mahAthmAs … Read more

9.34 manmanA bhava madhbhaktha:

SrI:  SrImathE SatakOpAya nama:  SrImathE rAmAnujAya nama:  SrImath varavaramunayE nama: Chapter 9 << Chapter 9 verse 33 SlOkam – Original manmanA bhava madhbhaktha: madhyAjI mAm namaskuru | mAm Evaishyasi yukthvaivam AthmAnam mathparAyaNa: || word-by-word meaning manmanA bhava – have your mind fixed on me continuously. madhbhaktha bhava – (that too) have great love towards me. … Read more

9.34 man-manā bhava mad-bhakto (Original)

SrI:  SrImathE SatakOpAya nama:  SrImathE rAmAnujAya nama:  SrImath varavaramunayE nama: Chapter 9 << Chapter 9 verse 33 Simple man-manā bhava mad-bhakto mad-yājī māṁ namaskuru mām evaiṣyasi yuktvaivam ātmānaṁ mat-parāyaṇaḥ ‘Fix thy heart on Me, be My beloved, be My worshipper, and bend thyself to Me. Mind thus devoted, and giving thyself up to Me, thou … Read more