९.६ – यथाऽऽकाशस्थितो नित्यम्
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ५ श्लोक यथाऽऽकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान् |तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय // पद पदार्थ सर्वत्रग: – सर्वत्र व्याप्तमहान् – महाननित्यं आकाशस्थित: – सदैव आकाश (जो किसी भी वस्तु का सहारा नहीं है )में रहता हैवायु: -हवायथा – मुझे ही विश्राम … Read more