६.१७ – युक्ताहारविहारस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक १६ श्लोक युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु |युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा || पद पदार्थ युक्ताहारविहारस्य – पर्याप्त मात्रा में भोजन और पर्याप्त शारीरिक गतिविधियाँ करनाकर्मसु – उसके कर्मों मेंयुक्त चेष्टस्य – पर्याप्त व्यवस्ताएँ होनायुक्त स्वप्न अवबोधस्य – पर्याप्त नींद और जागनादु:खहा – … Read more

६.१६ – नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक १५ श्लोक नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नत: |न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन || पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन !अत्यश्नत: तु – जो बहुत अधिक खाता हैयोग: – योग अभ्यासन अस्ति – उत्पन्न नहीं होताएकान्तं – बहुतअनश्नत: च – जो … Read more

६.१५ – युञ्जन्नेवं सदात्मानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक १४ श्लोक युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानस: |शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति || पद पदार्थ योगी – योग अभ्यासीएवं – इस प्रकारआत्मानं – मन कोसदा – हमेशायुञ्जन् – ध्यान केंद्रित (मुझपर)नियतमानस: – ( फलस्वरूप) अनुशासित मन के साथमत् संस्थां – मुझमें रहकरनिर्वाण परमां … Read more

६.१४ – प्रशान्तात्मा विगतभी:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक १३ श्लोक प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थित: |मन: संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्पर: || पद पदार्थ प्रशान्तात्मा – शांत मन के साथविगतभी: – निर्भय होकरब्रह्मचारि व्रते स्थित: – ब्रह्मचर्य का पालन करतेमन: संयम्य – मन को नियंत्रित करकेमच्चित्त: – मुझपर मनन करते … Read more

६.१३ – समं कायशिरोग्रीवम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक १२ श्लोक समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिर: |सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् || पद पदार्थ काय शिरो ग्रीवं समं – शरीर, सिर और गर्दन को सीधा रखकेअचलं – बिना कोई संचलन केस्थिर: – अटलधारयन् – स्थापित करदिशश्च अनवलोकयन् – किसी भी दिशा … Read more

६.१२ – तत्रैकाग्रं मन: कृत्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ११ श्लोक तत्रैकाग्रं मन: कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रिय: |उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये || पद पदार्थ तत्र आसने – उस बैठक परउपविश्य – बैठकरमन: – मन कोएकाग्रं कृत्वा – एकल-केंद्रित रखकरयत चित्तेन्द्रिय क्रिय: – मन और इन्द्रियों के कर्मों पर नियंत्रण पाकरआत्म विशुद्धये – सांसारिक … Read more

६.११ – शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक १० श्लोक शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मन: |नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् || पद पदार्थ शुचौ देशे – शुद्ध स्थान परआत्मन: – स्वयं के लिएस्थिरं – अटल ( लकड़ी से बना हुआ इत्यादि )नात्युच्छ्रितं – न बहुत ऊँचानाति नीचं – न बहुत नीचेचैलाजिन … Read more

६.१० – योगी युञ्जीत सततम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ९ श्लोक योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थित: |एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रह: || पद पदार्थ योगी – ( पहले बताया गया ) कर्म योगीसततं – हर दिन, योग अभ्यास के लिए विशिष्ट समय निर्धारितरहसि स्थित: – एकांत स्थान पर रहकरएकाकी – और … Read more

६.९ – सुहृन्मित्रार्युदासीन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ८ श्लोक सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु |साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते || पद पदार्थ सुहृन् मित्र अरि उदासीन मध्यस्थ द्वेष्य बन्धुषु – शुभचिंतक , मित्र , शत्रु , असंबद्ध व्यक्ति, तटस्थ व्यक्ति , जिनके अंदर स्वाभाविक घृणा है , जिनके अंदर स्वाभाविक स्नेह है, … Read more

६.८ – ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ७ श्लोक ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रिय: |युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चन: || पद पदार्थ ज्ञान विज्ञान तृप्तात्मा – ज्ञान और महा ज्ञान से तृप्त मन के साथकूटस्थ: – शुद्ध आत्मा पर दृढ़ता से स्थापितविजितेन्द्रिय: – ज्ञानेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करकेसम लोष्टाश्म काञ्चन: … Read more