१४.१३ – अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १२ श्लोक अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च।तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन।। पद पदार्थ कुरुनन्दन – हे कुरुवंश के वंशज!अप्रकाश: – ज्ञान का अभावअप्रवृत्ति: च – आलस्यप्रमाद: – असावधानीमोह: एव च – और विपरीत ज्ञानएतानि – ये सबतमसि विवृद्धे – जब तमोगुण … Read more

१४.१२ – लोभः प्रवृत्तिरारम्भः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ११ श्लोक लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा।रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ।। पद पदार्थ भरतर्षभ – हे भरत के वंशजों में सर्वोत्तम!लोभः – कृपणताप्रवृत्ति: – व्यर्थ कार्यकर्मणाम् आरम्भ: – विशेष रूप से लक्ष्य पर केन्द्रित होकर कार्य आरम्भ करनाअशमः – इन्द्रियों पर नियंत्रण … Read more

१४.११ – सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १० श्लोक सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन् प्रकाश उपजायते।ज्ञानं यदा तदा विद्याद् विवृद्धं सत्त्वमित्युत।। पद पदार्थ अस्मिन् देहे – इस (भौतिक) शरीर मेंसर्व द्वारेषु – नेत्र आदि इन्द्रियों जैसे द्वारों में. जिनके द्वारा ज्ञान संचारित होता हैप्रकाश ज्ञानं – ज्ञान जो वस्तुओं के … Read more

१४.१० – रज: तम: चाभिभूय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ९ श्लोक रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत।रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा।। पद पदार्थ भारत – हे भारतवंशी! (शरीर के तीन गुणों में)रज: तम: च अभिभूय- रजोगुण और तमोगुण पर हावी होकरसत्त्वं भवति – (कभी-कभी) सत्व गुण प्रबल होता हैसत्त्वं तम: … Read more

१४.९ – सत्त्वं सुखे सञ्जयति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ८ श्लोक सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत।ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत।। पद पदार्थ भारत – हे भरतवंशी!सत्त्वं – सत्व गुणसुखे सञ्जयति – मुख्यतः आनन्द में आसक्ति उत्पन्न करता हैरजः – रजस (राग ) की गुणवत्ताकर्मणि (सञ्जयति) – मुख्यतः कर्मों … Read more

१४.८ – तमस् त्वज्ञानजं विद्धि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ७ श्लोक तमस् त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्।प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत।। पद पदार्थ भारत – हे भरत के वंशज!तम: तु – तमो गुण (अज्ञानता का गुण) के विषय मेंअज्ञान जं – संस्थाओं की प्रकृति को गलत समझने के कारण उत्पन्न होता हैसर्व देहिनाम् … Read more

१४.७ – रजो रागात्मकं विद्धि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ६ श्लोक रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम्।तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम्।। पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र!रज: – रजो गुणरागात्मकं – (पुरुष और महिला के बीच) इच्छा का कारणतृष्णा सङ्ग समुद्भवम् – शब्द (ध्वनि) आदि पर आधारित सांसारिक सुखों के प्रति इच्छा … Read more

१४.६ – तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ५ श्लोक तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्।सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ।। पद पदार्थ अनघ – हे निर्दोष (अर्जुन)!तत्र – सत्व, रजस और तमस नामक तीन गुणों में सेसत्त्वं – सत्व (अच्छाई)निर्मलत्वात् – चूँकि स्वाभाविक रूप से (आत्मा का ज्ञान और आनंद) बिना छुपाए … Read more

१४.५ – सत्त्वं रजस् तम इति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ४ श्लोक सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसंभवाः।निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्।। पद पदार्थ महाबाहो – हे महाबाहु अर्जुन!सत्त्वं रज: तम: इति गुणाः – सत्व (अच्छाई), रजस (इच्छाएं) और तमस (अज्ञान) नाम के ये तीन गुणप्रकृति संभवाः – हमेशा पदार्थ के साथ … Read more

१४.४ – सर्वयोनिषु कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ३ श्लोक सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः।तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता।। पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र!सर्व योनिषु – सभी जन्मों जैसे देव , मनुष्य, तिर्यक (पशु) और स्थावर (पौधे) मेंयाः मूर्तयः – उन विभिन्न रूपों/शरीरोंसम्भवन्ति – प्रकट हो रहे … Read more