श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अहो बत महत् पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् ।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः ৷৷
पद पदार्थ
वयं – हम
राज्यसुखलोभेन – राज्यशासन की लोभ और आनंद की लालच में
स्वजनं – हमारे ही रिश्तेदारों को
हन्तुं उद्यता: – मारने की कोशिश कर रहे हैं
(इति) यत् – जो है
तत् – वो
महत् – बहुत बड़ा
पापं – पाप
कर्तुं – करने को
व्यवसिता – हमने हिम्मत की है
अहो -ओह !
बत – बहुत दुःखद !
सरल अनुवाद
ओह! बहुत दुःखद ! राज्यशासन की लोभ और आनंद की लालच में , हम हमारे ही रिश्तेदारों को मारने की कोशिश कर रहे हैं | हम वो करने का साहस कर रहे हैं( रिश्तेदारों को मारने की पाप ) जो संसार का सबसे बड़ा पाप है |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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