३.१२ – इष्टान् भोगान् हि वो देवा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः ।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो  भुङ्क्ते स्तेन एव सः ॥

पद पदार्थ

यज्ञ भाविता: देवा: –  यज्ञों द्वारा पूजित देवता
व:- तुम्हे 
इष्टान् – जो आवश्यक है (बाद में उनकी पूजा के लिए)
भोगान् – उपयोग किये  जाने वाले  सामग्री
दास्यन्ते – देंगे;
तै: – उन देवताओं द्वारा
दत्तान – सामग्री जो दी गई थी (उनकी पूजा करने के लिए)
एभ्य:- इन देवताओं को
अप्रदाय – उन्हें अर्पण न करना 
य: – जो
भुङ्क्ते – स्वयं आनंद लेता है
स: – वह
स्तेन एव  – वास्तव में एक चोर ही  है 

सरल अनुवाद

“यज्ञों द्वारा पूजित देवता तुम्हें सामग्री देंगे जिसकी (बाद में उनकी पूजा के लिए) आवश्यकता होगी; जो इन सामग्रियों को इन देवताओं को अर्पित न कर , स्वयं उपभोग करता है, वह वास्तव में चोर ही  है”।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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