३.१५ – कर्म ब्रह्मोद्भवम् विद्धि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

कर्म ब्रह्मोद्भवम् विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम् ।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ॥

पद पदार्थ

कर्म – कर्म (धार्मिक कार्य)
ब्रह्मोद्भवम् – शरीर से उत्पन्न
विद्धि –  जानो
ब्रह्म – शरीर
अक्षरसमुद्भवम् – जीवात्मा से उत्पन्न
तस्मात् – इस प्रकार
सर्वगतं  – वह जो सभी के लिए उपस्थित है
ब्रह्म – शरीर
नित्यं – सदैव
यज्ञे प्रतिष्ठितम् – यज्ञ पर आधारित है

सरल अनुवाद

यह जान लो कि कर्म (धार्मिक कार्य) शरीर से पैदा होता है; शरीर का जन्म जीवात्मा से हुआ है; इस प्रकार वह शरीर जो सभी के लिए उपस्थित है, सदैव यज्ञ पर आधारित है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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