४.२७ – सर्वाणीन्द्रियकर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

<< अध्याय ४ श्लोक २६

श्लोक

सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे ।
आत्मसंयमयोगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते ॥

पद पदार्थ

अपरे – कुछ अन्य कर्मयोगी
ज्ञान दीपिते – ज्ञान द्वारा जलाए गए दीपक से
आत्म संयम योगग्नौ – मन पर नियंत्रण की अग्नि में, जो एक योग साधन है (योग का एक भाग)
सर्वाणि इन्द्रिय कर्माणि – इंद्रियों की सभी गतिविधियाँ
सर्वाणि प्राण कर्मणि च – और प्राणों की सभी गतिविधियाँ (प्राण-वायु)
जुह्वति – आहुति देते हैं  

सरल अनुवाद

कुछ अन्य कर्म योगी, इंद्रियों और प्राणों की सभी गतिविधियों को, ज्ञान द्वारा जलाए गए दीपक से मन पर नियंत्रण की अग्नि में, जो एक योग साधन (योग का एक भाग ) है ,संलग्न करते हैं ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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