८.५ – अन्तकाले च मामेव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ८

<< अध्याय ८ श्लोक ४

श्लोक

अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेबरम् ।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥

पद पदार्थ

अन्त काले च – अंतिम क्षणों में भी ( वांछित परिणाम प्राप्त करते समय)
य: – जो कोई
मामेव स्मरन् – मुझको ( उसके वांछित परिणाम के साथ ) स्मरण करता हुआ
कलेबरम् त्यक्त्वा प्रयाति – अपना शरीर त्याग देता है
स: – वह
मद्भावं याति – मेरे भाव को प्राप्त करता है
अत्र – इसमें
संशयः न अस्ति – संदेह नहीं है

सरल अनुवाद

जो कोई मुझको ( उसके वांछित परिणाम के साथ ) स्मरण करता हुआ अपना शरीर त्यागता है अंतिम क्षणों में भी ( वांछित परिणाम प्राप्त करते समय) मेरे भाव को प्राप्त करता है; इसमें कोई संदेह नहीं है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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