१४.२३ – उदासीनवदासीनो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १४

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श्लोक

उदासीनवदासीनो  गुणैर्यो न विचाल्यते  |
गुणा  वर्तन्त  इत्येव योऽवतिष्ठति नेङ्गते  ||

पद पदार्थ

य:- जो कोई भी
उदासीनवत् आसीन: – उदासीन रहता (आत्मा के अलावा अन्य विषयों पर जैसे कि पहले बताया गया है)
गुणै: – तीन गुणों से
न विचाल्यते – बदलता नही (पसंद और नापसंद के कारण)
“गुणा: वर्तन्ते” – “तीन गुणों ही कारण हैं (ज्ञान आदि जैसे प्रभाव के लिए)”
इति – उस पर विचार करते हुए
य:- जो कोई भी
अवतिष्ठति एव – मौन रहता है
न इङ्गते – कार्य नहीं करता (उन गुणों के आधार पर)
( वही तीन गुणों से परे है)

सरल अनुवाद

जो कोई भी तीन गुणों से नहीं बदलता है, उदासीन रहता है (आत्मा के अलावा अन्य विषयों पर जैसे  कि पहले बताया गया है), जो कोई उस पर विचार करते हुए मौन रहता है कि “तीन गुणों ही (ज्ञान आदि जैसे प्रभाव के लिए) कारण हैं” और (उन गुणों के आधार पर) कार्य नहीं करता है , वही तीन गुणों से परे है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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