१५.८ – शरीरं यदवाप्नोति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १५

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श्लोक

शरीरं यदवाप्नोति  यच्चाप्युत्क्रामतीश्वर : |
गृहीत्वैतानि  संयाति  वायुर्गन्धानिवाशयात् ||

पद पदार्थ

ईश्वर: – बंधी हुई आत्मा जो अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करती है
यत् शरीरं अवप्नोति – (पिछले शरीर को त्यागने के बाद) जिस नये शरीर में पहुँचती है (उस शरीर के लिए)
यच्च अपि उत्क्रामति – जिस शरीर को वह त्यागती है (उस शरीर से)
वायु:- हवा
आशयात् -वस्तुओं (से) (जैसे सुगंधित फूल आदि)
गन्धान् – सुगंधित पराग
इव – जैसे (वे ले जाते हैं)
एतानि – ये इंद्रियाँ
गृहीत्वा – उन्हें लेकर (उस शरीर से जिसे छोड़ती है )
संयाति – (नये शरीर तक) जाती है

सरल अनुवाद

बंधी हुई आत्मा जो अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करती है, पिछले शरीर को त्यागने के बाद जिस नये शरीर में पहुँचती है (उस शरीर के लिए), इन इंद्रियों को पिछले शरीर से नए शरीर में ले जाती है, जैसे हवा वस्तुओं (जैसे सुगंधित फूल आदि) से सुगंधित पराग ले जाती है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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