१.१३ – तत: शङ्खाश्च

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

< < अध्याय १ श्लोक १२

श्लोक

ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा : ।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोSभवत् ॥

पद पदार्थ

तत: – बाद में
शङ्खा: च भेर्य: च पणव अनाक गोमुख: – विभिन्न वाद्य यंत्र जैसे शंख , भेरी (केतली-ढोल), पणव (छोटा-ढोल), अनाक (दोहरा ढोल ), गोमुख (गाय – सिंघ )
सहसा एव – तुरंत
अभ्यहन्यन्त – ध्वनि पैदा की 
स: शब्द: – वह शोर
अभवत् – बहुत जोर से था

सरल अनुवाद

इसके बाद, शंख (शंख), भेरी (केतली-ढोल), पणव (छोटा-ढोल), अनाक (दोहरा ढोल), गोमुख (गाय-सिंघ) जैसे विभिन्न वाद्य यंत्रों को तुरंत शोर करने के लिए जोर से बजाया गया।

>>अध्याय १ श्लोक १.१४

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुजदासि

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/1-13/

संगृहीत- http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org