१.४३ – दोषैरेतैः कुलघ्नानां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

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श्लोक

दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः ।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः ৷৷

पद पदार्थ

कुलघ्नानां – जिसने कुल को नष्ट किया है
वर्णसङ्करकारकैः – जिससे वर्णों में मिश्रण हो जाता है
ऐतै: दोषै: – इन दोषों के कारण
शाश्वताः – शाश्वत
जातिधर्माः – वर्णों के पारम्परिक नियम तथा धर्म [ जैसे ब्राह्मण वर्ण ]
कुलधर्मा: च – कुलों के पारम्परिक नियम तथा धर्म
उत्साद्यन्ते – टूट/नष्ट हो जाते हैं

सरल अनुवाद

कुल को नष्ट करने वालों तथा वर्णों में मिश्रण लाने वालों के इन दोषों के कारण , वर्णों के औरकुलों के शाश्वत, पारम्परिक नियम तथा धर्म [ जैसे ब्राह्मण वर्ण ] टूट/नष्ट हो जाते हैं |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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