श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि।
विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसंभवान्।।
पद पदार्थ
प्रकृतिं च – मूल प्रकृति
पुरुषं अपि उभौ एव – और जीवात्मा दोनों
अनादि विद्धि – जानो कि दोनों अनादि काल से एक साथ हैं
विकारान् च – परिवर्तन (जैसे कि प्रियता, घृणा आदि जो इस संसार में बंधन का कारण हैं)
गुणान् च एव – और गुण (जैसे कि अमानित्वम् आदि जो मोक्ष का कारण हैं) दोनों
प्रकृति संभवान् विद्धि – जानो कि इस भौतिक क्षेत्र में पैदा होते हैं
सरल अनुवाद
जानो कि मूल प्रकृति और जीवात्मा दोनों अनादि काल से एक साथ हैं; यह जानो कि दोनों परिवर्तन (जैसे कि प्रियता, घृणा आदि जो इस संसार में बंधन का कारण हैं) और गुण (जैसे कि अमानित्वम् आदि जो मोक्ष का कारण हैं) इस भौतिक क्षेत्र में पैदा होते हैं।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/13-19/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org