१७.२ – त्रिविधा भवति श्रद्धा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १७

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श्लोक
श्री भगवान उवाच
त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा |
सात्विकी राजसी  चैव तामसी  चेति तां श्रुणु ||

पद पदार्थ

श्री भगवान उवाच – श्री भगवान बोले
देहिनां – उनके लिए जिनके पास (भौतिकवादी) शरीर है
स्वभावजा सा श्रद्धा – विभिन्न विषयों में उनके रुचि के कारण उन्हें जो श्रद्धा प्राप्त होता है
सात्विकी राजसी चैव तामसी चेति – सात्विक (अच्छाई ), राजस (भावुक) और तामस (अज्ञानी) के रूप में
त्रिविधा भवति – तीन श्रेणियों का;
तां- ऐसी श्रद्धा का स्वरूप
श्रुणु – तुम सुनो

सरल अनुवाद

श्री भगवान बोले – जिनके पास (भौतिकवादी) शरीर है, वे विभिन्न विषयों में उनके रुचि  के कारण उन्हें जो श्रद्धा प्राप्त होता है, वह तीन श्रेणियों का है, सात्विक (अच्छाई ), राजस (भावुक) और तामस (अज्ञानी)। ऐसी श्रद्धा का स्वरूप तुम सुनो।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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