३.१ – ज्यायसी चेत् कर्मणस् ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

अर्जुन उवाच
ज्यायसी चेत् कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन ।
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव ॥

पद पदार्थ

अर्जुन उवाच – अर्जुन ने  कहा,
जनार्दन – हे जनार्दन!
केशव – हे केशव!
कर्मण:  कर्म से 
बुद्धि:- ज्ञान में स्थित होना
ज्यायसी – सर्वोत्तम है 
ते – तुम्हारे लिए
मता चेत्- अगर यह मजबूत राय है
तत् – उस स्थिति में
घोरे – क्रूर
कर्मणि – युद्ध जैसे कर्मों मे
किम- क्यों
माम् – मुझे 
नियोजयसि – आग्रह कर रहे हो 

सरल अनुवाद

(अर्जुन ने  कहा,)हे जनार्दन! हे केशव! यदि तुम्हारा मजबूत राय है कि युद्ध आदि क्रूर कर्मों की अपेक्षा, ज्ञान में स्थित होना ही श्रेष्ठ है, तो फिर तुम मुझे ऐसे युद्ध में क्यों आग्रह कर रहे हो ?

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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