५.२४ – योऽन्त:सुखोऽन्तरारामस्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

योऽन्त: सुखोऽन्तरारामस् तथान्तर्ज्योतिरेव य: ।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ।।

पद पदार्थ

य: – वह व्यक्ति
अन्त:सुख: ( एव ) – केवल आत्मानंद का आमोद
य: अन्तराराम: ( एव ) – (वह व्यक्ति ) जो केवल वही आनंद का निवास स्थान है
तथा – उसी प्रकार
य: – वह व्यक्ति
अन्तर्ज्योति एव – केवल वही आनंद को साधन मानकर
ब्रह्म भूत: – आत्मा के शुद्धतम स्थिति को प्राप्त करके
स: योगी – वह कर्म योगी
ब्रह्म निर्वाणं – आत्मानंद का परम सुख
अधिगच्छति – प्राप्त करता है

सरल अनुवाद

जो कर्म योगी केवल आत्मानंद का आमोद करता है ; जिसे केवल वही, आनंद का निवास स्थान है और जिसे केवल वही आनंद का साधन है ; वह कर्म योगी, आत्मा के शुद्धतम स्थिति को प्राप्त करके आत्मानंद का परम सुख को प्राप्त करता है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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