५.३ – ज्ञेयः स नित्यसन्यासी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

<< अध्याय ५ श्लोक २

श्लोक

ज्ञेयः स नित्यसन्यासी  यो न द्वेष्टि  न काङ्क्षति ।      
निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते ॥

पद पदार्थ

महाबाहो – हे शक्तिशाली भुजाओं वाला!
य:- जो कर्मयोग करता है
न काङ्क्षति – (कामुक सुखों की) इच्छा नहीं करता है 
न द्वेष्टि – घृणा न करना (उन लोगों के प्रति जो उसके लिए ऐसे सुखों को रोकते हैं)
(और उसके कारण)
निर्द्वन्द्व:- (सुख-दुःख, गर्मी-सर्दी आदि के) जोड़ियों को सहन करना
स: – वह
नित्य सन्यासी – हमेशा ज्ञान पर केंद्रित रहता है
(स:) हि  – वही
बंधात् – संसार के बंधन से
सुखं – आसानी से
प्रमुच्यते – अच्छी तरह से मुक्त होता है

सरल अनुवाद

हे शक्तिशाली भुजाओं वाला! जो मनुष्य (इन्द्रिय सुखों की) इच्छा न करके और ( ऐसे सुखों को रोकने वालों के प्रति) घृणा न करके  और उसके कारण (सुख-दुःख, गर्मी-सर्दी आदि के) जोड़ियों को सहन करते हुए कर्मयोग का अभ्यास करता है, वह सदैव ज्ञान पर केंद्रित रहता है । केवल वही, आसानी से संसार के बंधन से मुक्त होता है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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