श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
सान्ख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः।
एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ॥
पद पदार्थ
सांख्य योगौ – ज्ञान योग और कर्म योग
पृथक – भिन्न (परिणामों में)
बाला:- मूर्ख
न पंडिता:- पूर्ण ज्ञान से रहित
प्रवदन्ति – कहते हैं
उभयो:- दोनों में
एकम् अपि – केवल एक
सम्यक अस्थिता:- दृढ़ता से पकड़ना
(उभयो:) फलम् – दोनों का परिणाम [जो एक ही हैं – आत्मबोध]
लभते – प्राप्त करता है
सरल अनुवाद
जो लोग मूर्ख हैं, पूर्ण ज्ञान से रहित हैं, कहते हैं कि ज्ञान योग और कर्म योग के अलग-अलग परिणाम होते हैं; यदि कोई उनमें से किसी एक को दृढ़ता से पकड़ता है, तो उसे दोनों का फल [जो एक ही है – आत्म साक्षात्कार] प्राप्त होता है ।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/5.4
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org