५.५ – यत् साङ्ख्यैः प्राप्यते स्थानं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

यत्साङ्ख्यैः  प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि  गम्यते ।
एकं  साङ्ख्यं  च योगं  च यः पश्यति स पश्यति ॥

पद पदार्थ

यत् स्थानं – आत्मबोध का वह परिणाम
साङ्ख्यैः – ज्ञान योग के अनुयायियों द्वारा
प्राप्यते – प्राप्त होता है
तत्  – वही परिणाम
योगै: अपि – कर्म योग के अनुयायियों द्वारा भी
गम्यते – प्राप्त होता है
सांख्यम योग च – ज्ञान योग और कर्म योग (क्योंकि वे एक ही परिणाम की ओर ले जाते हैं)
एकम् – एक के रूप में
य: पश्यति – जो देखता है
स: पश्यति – वह बुद्धिमान है

सरल अनुवाद

ज्ञान योग के अनुयायियों द्वारा प्राप्त आत्म-बोध का वही परिणाम कर्मयोग के अनुयायियों को भी प्राप्त होता है; जो कोई ज्ञान योग और कर्म योग को एक के रूप में (क्योंकि वे एक ही परिणाम की ओर ले जाते हैं) देखता है , वह बुद्धिमान है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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