४.२ – एवं परम्परा प्राप्तम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक १ श्लोक एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदु:।स कालेनेह महता योगो नष्ट: परन्तप ।। पद पदार्थ परन्तप – हे शत्रुओं का उत्पीड़क !एवं – इस प्रकारपरम्परा प्राप्तम् – पुत्र / पौत्र के रूप में उत्तरधिकारी के माध्यम से सिखाया गयाइमं – यह … Read more

४.१ – इमं विवस्वते योगं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ३ श्लोक ४३ श्लोक श्री भगवान उवाचइमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ।। पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – भगवान श्री कृष्णा ने कहाअहम् – मैंअव्ययं – अविनाशीइमं योगं – इस कर्म योग , जिसे मैंने पिछले अध्याय में सिखाया थाविवस्वते – … Read more

अध्याय ४ – ज्ञान योग

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नमः <<अध्याय ३ आळ्वारतिरुनगरी, श्रीपेरुम्बुतूर, श्रीरंगम और तिरुनारायणपुरम में भगवत रामानुज आधार – http://githa.koyil.org/index.php/4/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

३.४२ – इन्द्रियाणि पराण्याहुर्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ४१ श्लोक इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः॥ पद पदार्थ इन्द्रियाणि – दस इन्द्रियाँ ( पॉँच कर्मेन्द्रियाँ और पॉँच ज्ञानेन्द्रियाँ )पराणि – मूल कारण हैं ( ज्ञान का अवरोध करने में )अहु: – कहा जाता है किइन्द्रियेभ्यः … Read more

३.४३ – एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ४२ श्लोक एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥ पद पदार्थ महाबाहो – हे बलिष्ठ भुजाओं वाला !एवं – इस प्रकारबुद्धेः परं – वासना जो अटल दृढ़ से भी बड़ा है ( स्वज्ञान का अवरोध करने में … Read more

३.४१ – तस्मात् त्वमिन्द्रियाण्यादौ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ४० श्लोक तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्॥ पद पदार्थ हे भरत ऋषभ: – हे भरत वंश के नेता !तस्मात् – जैसे पहले बताया गया है, ज्ञान योग का अभ्यास करना कठिन हैत्वं – तुम ( जो स्वाभाविक से ज्ञानेंद्रीय … Read more

३.४० – इन्द्रियाणि मनो बुद्धिर्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३९ श्लोक इन्द्रियाणि मनो बुद्धिर् अस्याधिष्ठानमुच्यते।एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्॥ पद पदार्थ अस्य – इस वासना के लिएइन्द्रियाणि – सारे इन्द्रियाँमन: – मनबुद्धि – स्थिर बुद्धि ( इन्द्रियों के आनंद में )अधिष्ठानं – अनुसरण करने के माध्यम हैंउच्यते – कहा जाता हैएष: … Read more

३.३९ – आवृतं ज्ञानमेतेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३८ श्लोक आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च॥ पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र !दुष्पूरेण – असंभव विषयों को प्राप्त करने की कामना करना और बिना कोई तृप्तिअनलेन – ( उन पदार्थों में भी जिनको प्राप्त कर सकते हैं … Read more

३.३८ – धूमेनाव्रियते वह्निर्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३७ श्लोक धूमेनाव्रियते वह्निर् यथादर्शो मलेन च।यथोल्बेनावृतो गर्भस् तथा तेनेदमावृतम्॥ पद पदार्थ वह्नि: – अग्नियथा धूमेन आव्रियते – जैसे धुआँ से व्याप्त हैआदर्श: – दर्पणयथा च मलेन ( आव्रियते ) – जैसे धूल से व्याप्त हैगर्भ: – गर्भयथा च उल्बेन … Read more

३.३७ – काम एष क्रोध एष

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३६ श्लोक श्रीभगवानुवाच काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्॥ पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – भगवान श्री कृष्ण ने उत्तर दियाएष: – वह कारण जिसके बारे में तुमने प्रश्न किया ( लौकिक सुख )रजोगुण समुद्भवः – रजो … Read more