१२.१७ – यो न हृष्यति न द्वेष्टि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १६ श्लोक यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति |शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान् य: स मे प्रिय: || पद पदार्थ य: न हृष्यति – वह कर्म योग निष्ठ (कर्म योग अभ्यासी) जो (सुखद पहलुओं को देखकर) आनंदित नहीं होतान द्वेष्टि … Read more

१२.१६ – अनपेक्षः सुचि: दक्ष:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १५ श्लोक अनपेक्षः शुचि: दक्ष उदासीनो गतव्यथ : |सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्त: स मे प्रिय: || पद पदार्थ अनपेक्ष: – आत्मा के अलावा किसी अन्य वस्तु की इच्छा न करनाशुचि:- आहार शुद्धि (भोजन सेवन में शुद्धता) होनादक्ष: – एक विशेषज्ञ होना … Read more

१२.१५ – यस्मान् नोद्विजते लोको

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १४ श्लोक यस्मान् नोद्विजते लोको लोकान् नोद्विजते च य: |हर्षामर्षभयोद्वेगै: मुक्तो य: स च मे प्रिय: || पद पदार्थ यस्मात् – उस कर्म योग निष्ठ (कर्म योग अभ्यासी) से लोक: – यह संसारन उद्विजते – भय से कांपता नहींय: – … Read more

१२.१४ – सन्तुष्ट: सततं योगी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १३ श्लोक सन्तुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चय: |मय्यर्पित मनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स: मे प्रियः || पद पदार्थ सन्तुष्ट:- सन्तुष्ट रहनासततं योगी – जो सदैव स्वयं का ध्यान करता हैयतात्मा – नियन्त्रित मन वाला हैदृढ़ निश्चय: – दृढ़ ज्ञान/विश्वास होना (शास्त्र में … Read more

१२.१३ – अद्वेष्टा सर्वभूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १२ श्लोक अद्वेष्टा सर्वभूतानां  मैत्र: करुण एव च ​​|निर्ममो निरहङ्कार: समदु:खसुख: क्षमी || पद पदार्थ सर्व भूतानाम् अद्वेष्टा – किसी भी प्राणी से घृणा नहीं करनामैत्र:- सभी प्राणियों के प्रति मित्रता से रहनाकरुण एव च – उनके प्रति दया दिखाना … Read more

१२.१२ – श्रेयो हि ज्ञानं अभ्यासात्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ११ श्लोक श्रेयो हि ज्ञानम् अभ्यासात् ज्ञानात् ध्यानं विशिष्यते |ध्यानात् कर्मफलत्याग: त्यागाचछान्तिरनन्तरम् || पद पदार्थ अभ्यासात् – भगवान के प्रति (सच्चे प्रेम के बिना) भक्ति से श्रेष्ट ज्ञानं – वह ज्ञान जो प्रत्यक्ष दर्शन की सुविधा देता है (जो ऐसी … Read more

१२.११ – अथैतदप्यशक्तोऽसि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १० श्लोक अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रित: |सर्वकर्मफलत्यागं  तत: कुरु यतात्मवान् || पद पदार्थ अथ – अबमत् योगम् आश्रित: – मेरी ओर भक्तियोग का अनुसरण करनाएतत् अपि कर्तुम् अशक्त: असि – यदि यह गतिविधि करने में असमर्थ है (जो भक्ति योग का … Read more

११.२८ – यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक २७ श्लोक यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति।तथा तवामी नरलोकवीरा: विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति।। पद पदार्थ बहव: – अनेकनदीनाम् अम्बुवेगाः – नदियों का प्रवाहसमुद्रम् एव अभिमुखा: – समुद्र की ओरयथा द्रवन्ति – जैसे वे बहते हैंतथा – उसी प्रकारअमी नरलोक वीरा: – इस … Read more

११.२७ – वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक २६ श्लोक वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि।केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु संदृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः।। पद पदार्थ दंष्ट्राकरालानि – घुमावदार दांत होनाभयानकानि – बहुत भयानकते वक्त्राणि – तुम्हारे मुखों मेंत्वरमाणा एव विशन्ति – प्रवेश करना (उनके विनाश की ओर)केचित् – उनमें से कुछचूर्णितै: उत्तमाङ्गैः … Read more

११.२६ – अमी (च त्वां) सर्वे धृतराष्ट्रस्य पुत्राः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक २५ श्लोक अमी (च त्वां ) सर्वे धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे :सहैवावनिपालसङ्घैः।भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथाऽसौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः।। पद पदार्थ अमी सर्वे धृतराष्ट्रस्य पुत्राः – धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों जो हमारे पार दिखाई देते हैंभीष्म: – भीष्म, पितामहद्रोण: – द्रोण, शिक्षकतथा असौ सूतपुत्र: … Read more