१२.१७ – यो न हृष्यति न द्वेष्टि
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १६ श्लोक यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति |शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान् य: स मे प्रिय: || पद पदार्थ य: न हृष्यति – वह कर्म योग निष्ठ (कर्म योग अभ्यासी) जो (सुखद पहलुओं को देखकर) आनंदित नहीं होतान द्वेष्टि … Read more