२.७० – आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६९ श्लोक आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमाप: प्रविशन्ति यद्वत् । तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥ पद पदार्थ यद्वत् – जैसेआपूर्यमाणं  – स्वाभाविक रूप से पूर्णअचलप्रतिष्ठम् – गतिहीनसमुद्रम् – महासागरआप:-नदी का जलप्रविशन्ति – जैसे  प्रवेश करते हैंतदवत् – उसी  प्रकारसर्वे काम: – … Read more

२.६९ – या निशा सर्वभूतानां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६८ श्लोक या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी । यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने:॥ पद पदार्थ या  – स्वयं के बारे में वह ज्ञानसर्वभूतानां – सभी प्राणियों के लिएनिशा – रात के समान अंधकारमय तस्यां – ऐसे ज्ञान के सन्दर्भ … Read more

२.६८ – तस्माद्यस्य महाबाहो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६७ श्लोक तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः ।इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ पद पदार्थ महाबाहो – हे महाबाहो!तस्मात् – इस प्रकारयस्य इन्द्रियाणी- जिनकी ज्ञानेन्द्रियाँइन्द्रियार्थेभ्य:-सांसारिक सुखों सेसर्वशः: निगृहीतानि – सभी प्रकार से खींच लिया गयातस्य – उसके लिएप्रज्ञा – ज्ञान (स्वयं के बारे में)प्रतिष्ठिता … Read more

२.६७ – इन्द्रियाणां हि चरतां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६६ श्लोक इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोSनुविधीयते ।तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि ॥ पद पदार्थ चरतां – सांसारिक सुखों का (इच्छानुसार) आनंद लेना इन्द्रियाणां – इन्द्रियाँ यत् मन:- वह मन अनुविधीयते – (मनुष्य द्वारा) पालन करने के लिए बनाया गयावह – वह मनअस्य – ऐसे … Read more

२.६६ – नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६५ श्लोक नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य  कुतः सुखम् ॥ पद पदार्थ अयुक्तस्य –  जिसका मन/हृदय मुझसे जुड़ा नहीं हैबुद्धि: – आत्म  ज्ञानन अस्ति  – नहीं होगा ;अयुक्तस्य – जिसके पास वह(आत्म) ज्ञान नहीं हैभावना – आत्मा … Read more

२.६५ – प्रसादे सर्वदु:खानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६४ श्लोक प्रसादे सर्वदु:खानां हानिरस्योपजायते ।प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धि: पर्यवतिष्ठते ॥ पद पदार्थ अस्य – ऐसे व्यक्ति के लिएप्रसादे  (सती) – मन की स्पष्टता प्राप्त करने के बादसर्वदु:खानां  हानि:- सभी दुखों का नाश उपजायते– होता हैप्रसन्न चेतस: – जिसका मन शुद्ध होआशु  … Read more

२.६४ – रागद्वेश वियुक्तैस् तु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६३ श्लोक रागद्वेश वियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् ।आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति ॥ पद पदार्थ रागद्वेश विमुक्तै: (वियुक्तै:) – इच्छा और द्वेष से मुक्त होकर  (मेरी (कृष्ण की) कृपा से)आत्मवश्यै: – स्वयं के वश में होनाइन्द्रियैः- इन्द्रियाँविषयान् – विषय वस्तु जैसे ध्वनि आदिचरन् – लाँघनाविधेयात्मा … Read more

२.६३ – क्रोधाद्भवति सम्मोहः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६२ श्लोक क्रोधाद्भवति सम्मोहः  सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः ।स्मृतिभ्रंशाद्  बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात् प्रणश्यति ॥ पद पदार्थ क्रोधात् – उस क्रोध के कारणसम्मोहः-  मन का भ्रम भवति– होती हैसम्मोहात् – उस भ्रम के कारणस्मृतिविभ्रम: (भवति) – स्मृति की नाश होती हैस्मृतिभ्रंशाद् – स्मृतिनाश सेबुद्धिनाशा : (भवति) … Read more

२.६२ – ध्यायतो विषयान्पुम्सः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६१ श्लोक ध्यायतो विषयान्पुम्स: सङ्गस्तेषूपजायते ।सङ्गात् संजायते कामः कामात् क्रोधोSभिजायते ॥ पद पदार्थ विषयान् – इन्द्रिय वस्तुओं पर जो ध्वनि, स्पर्श,  रूप , रस , गंध  हैंध्यायता :- ध्यान करता है (इनके प्रति अनादिकाल से रुचि के कारण)पुम्स:- व्यक्ति के लिए … Read more

२.६१ – तानि सर्वाणि संयम्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६० श्लोक तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः ।वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ पद पदार्थ तानि सर्वाणी – वे सभी इंद्रियाँ (जो सांसारिक सुखों में आकर्षित होने के कारण दूर करना मुश्किल है)संयम्य – सांसारिक सुखों से खींचकर मत्परः- मुझमें … Read more