२.५० – बुद्धियुक्तो जहातीह

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४९ श्लोक बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते ।तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥ पद पदार्थ इह – कर्म करते हुएबुद्धियुक्त: – बुद्धिमान (जो पहले समझाया गया )उभे सुकृत दुष्कृते – पुण्य और पाप दोनों कोजहाति – त्याग देता हैतस्मात्  – इस प्रकारयोगाय … Read more

२.४९ – दूरेण ह्यवरम् कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४८ श्लोक दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्दि योगाद्धनञ्जय ।बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥ पद पदार्थ धनञ्जय  – हे अर्जुन!बुद्धि योगात् –  बुद्धि के साथ किये गए कर्म (क्रिया) से भी कर्म – (उस बुद्धी के बिना किये गए )काम्य  (सांसारिक परिणामों के उद्देश्य से … Read more

२.४८ – योगस्थ: कुरु कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४७ श्लोक योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय  ।सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं  योग उच्यते ॥ पद पदार्थ धनञ्जय – हे अर्जुन!सङ्गं – लगाव (राज्य, रिश्तेदारों आदि के प्रति)त्यक्त्वा – छोड़करसिद्ध्यसिद्ध्यो: – प्राप्त करना और न प्राप्त करना (विजय आदि)सम: भूत्वा – … Read more

२.४७ – कर्मणि एवादिकारस् ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४६ श्लोक कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेशु कदाचन ।मा कर्मफलहेतुर्भू: मा ते सङ्गोSस्त्वकर्मणि ॥ पद पदार्थ ते – तुम , जो मुमुक्षु होकर्मणि इव  – केवल  नित्य (दैनिक) नैमित्तिक  (नियत काल ) कर्मों के लिएअधिकार: –  इच्छा कर सकते हो ;फलेषु – नीच … Read more

२.४६ – यावानर्थ उदपाने

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४५ श्लोक यावानर्थ उदपाने सर्वतः सम्प्लुतोदके।तावान् सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः ॥ पदपदार्थ सर्वत : सम्प्लुतोदके उदपाने –   चारों तरफ पानी से भरा हुआ जलाशय में(वह,जो पानी का उपयोग करना चाहता है)यावान अर्थ: – उसके लिए जितना पानी चाहिएतावान् (यथा … Read more

२.४५ – त्रैगुण्य विषया वेदा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४४ श्लोकत्रैगुण्य विषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन ।निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् || पदपदार्थ वेद: – वेदत्रैगुण्य विषया – तीन गुणों (सत्व, रजस, तमस ) वाले लोगों की भलाई के लिए कहता है अर्जुन – हे अर्जुन!(त्वम तु  – लेकिन तुम )निस्त्रैगुण्य … Read more

२.४४ – भोगैश्वर्य प्रसक्तानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४३ श्लोक भोगैश्वर्य प्रसक्तानां तयापहृत चेतसाम् ।व्यवसायात्मिका बुद्धि: समाधौ न विधीयते ॥ पद पदार्थ भोगैश्वर्य प्रसक्तानां – उन अज्ञानियों के लिए जो स्वर्ग आदि का आनंद लेने के काम में लगे हुए हैंतया – उन शब्दों/चर्चाओं के कारणअपहृत चेतासाम् – नष्ट बुद्धि … Read more

२.४३ – कामात्मानः स्वर्गपरा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४२ श्लोक कामात्मानः स्वर्गपरा जन्म कर्म फल प्रदाम् ।क्रियाविशेश्बहुलां भोगैश्वर्यगतिं  प्रति ॥ पद पदार्थ कामात्मान: – उनका मन वासनाओं से भरा हुआ हैस्वर्गपरा: – स्वर्ग को सर्वोच्च लक्ष्य माननाभोगैश्वर्यगतिं प्रति – स्वर्ग आदि का भोग प्राप्त करनाजन्म कर्म फल प्रदाम् – … Read more

२.४२ – यां इमां पुश्पितां वाचं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४१ श्लोक यामिमां पुश्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः ।वेद वाद रताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥ पद पदार्थ पार्थ – हे पार्थ!वेद वाद रता: – जो लोग वेदों में कहा गया स्वर्ग आदि परिणामों के बारे में चर्चा करने में लगे हुए हैं“अन्यत् न अस्ति” इति वादिना: … Read more

२.४१ – व्यवसायात्मिका बुद्धि:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४० श्लोक व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरु नन्दन ।बहु शाखा हि अनन्ताश्च बुध्दयोSव्यवसायिनाम् ॥ पद पदार्थ कुरु नंदन – हे अर्जुन (कुरु वंश के वंशज)!इह – कर्म योग के इस विषय मेंव्यवसायत्मिका – स्वयं के वास्तविक(आत्म) स्वरूप में दृढ़ विश्वास के साथबुद्धिः – … Read more