२.५८ – यदा संहरते चायम्
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५७ श्लोक यदा संहरते चायम् कूर्मोSङ्गानीव सर्वशः ।इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्य: तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ पद पदार्थ यदा – जबअयम – यह व्यक्तिइन्द्रियाणी – इन्द्रियों (जो सांसारिक सुखों तक पहुँचने का प्रयास करते हैं)कूर्म: अंङ्गानी इव – कछुए के अंगों की तरह (जो अंदर … Read more