१०.५ – अहिंसा समता तुष्टि:
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १० << अध्याय १० श्लोक ४ श्लोक अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः ।भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः || पद पदार्थ अहिंसा – दूसरों के दुःख का कारण नहीं होनासमता – (स्वयं और दूसरों के संबंध में आय/व्यय के विषयों में )संतुलित दिमाग के साथतुष्टि: … Read more