१३.३४ – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयो: एवं अन्तरं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ३३ श्लोक क्षेत्रक्षेत्रज्ञयो: एवं अन्तरं ज्ञानचक्षुषा।भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्।। पद पदार्थ एवं – जैसा कि इस अध्याय में बताया गया हैक्षेत्र क्षेत्रज्ञयो: अन्तरं – क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) के बीच के अंतरभूत प्रकृति मोक्षं च – अमानित्व … Read more

१३.३३ – यथा प्रकाशयत्येकः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ३२ श्लोक यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः।क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत।। पद पदार्थ भारत – हे भरतवंशी!एक: रविः – सूर्यइमं कृत्स्नं लोकं – सम्पूर्ण जगतयथा प्रकाशयति – जैसे (अपने प्रकाश से) प्रकाशित करता हैतथा – वैसे हीक्षेत्री – शरीरधारी … Read more

१३.३२ – यथा सर्वगतं सौक्ष्म्याद्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ३१ श्लोक यथा सर्वगतं सौक्ष्म्याद् आकाशं नोपलिप्यते।सर्वत्रावस्थितो देहे तथाऽऽत्मा नोपलिप्यते।। पद पदार्थ आकाशं – आकाशसर्वगतं – सभी में व्याप्त होते हुए भीसौक्ष्म्याद् – सूक्ष्म होने के कारणयथा न उपलिप्यते – उनके गुणों से प्रभावित नहीं होतातथा – उसी प्रकारआत्मा – … Read more

१३.३१ – अनादित्वान् निर्गुणत्वात्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ३० श्लोक अनादित्वान् निर्गुणत्वात् परमात्माऽयमव्ययः।शरीरस्थोऽपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते।। पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र!अयं परमात्मा – यह आत्मा (जो शरीर से बड़ा है)शरीरस्थ: – शरीर में रहते हुएअनादित्वात् – क्योंकि वह अनादि है और (किसी समय में) निर्मित … Read more

१३.३० – यदा भूतपृथग्भावम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २९ श्लोक यदा भूतपृथग्भावम् एकस्थम् अनुपश्यति।तत एव च विस्तारं ब्रह्म सम्पद्यते तदा।। पद पदार्थ भूत पृथग्भावम् – जीवात्माओं और विभिन्न प्रकार के शरीरों जैसे देव, मनुष्य , तिर्यक और स्थावर के संयोजन में विविधताएकस्थम् – एक ही वस्तु (अतार्थ प्रकृति … Read more

१३.२९ – प्रकृत्यैव च कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २८ श्लोक प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वशः।यः पश्यति तथाऽऽत्मानम् अकर्तारं स पश्यति।। पद पदार्थ सर्वशः कर्माणि – सभी कर्मप्रकृता एव क्रियमाणानि – शरीर द्वारा किये जाते हैं, जो कि पदार्थ का प्रभाव हैतथा – इसी प्रकारआत्मानं – आत्माअकर्तारं च – … Read more

१३.२८ – समं पश्यन् हि सर्वत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २७ श्लोक समं पश्यन् हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरम्।न हिनस्त्यात्मनात्मानं ततो याति परां गतिम्।। पद पदार्थ सर्वत्र – सभी शरीरों (जैसे कि देव , मनुष्य, तिर्यक (पशु) और स्थावर (पौधे)) मेंसमवस्थितम् ईश्वरम् – आत्मा, जो स्वामी, आधार और नियंता है (प्रत्येक शरीर … Read more

१३.२७ – समं सर्वेषु भूतेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २६ श्लोक समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति।। पद पदार्थ सर्वेषु भूतेषु – समस्त प्राणियों (जैसे देव , मनुष्य , तिर्यक (जानवर), स्थावर (पौधे) कोसमं – समान रूपपरमेश्वरं तिष्ठन्तं – (शरीर, मन और इन्द्रियों का) स्वामीविनश्यत्सु – … Read more

१३.२६ – यावत् सञ्जायते किञ्चित्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २५ श्लोक यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्गमम्।क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ।। पद पदार्थ भरतर्षभ – हे भरतवंशी!किञ्चित् स्थावर जङ्गमम् – स्थावर (जैसे कि पौधा) या जंगम (जैसे कि पशु) रूप मेंयावत् सत्त्वं सञ्जायते – जितने भी प्राणी जन्म लेते हैंतत् – वे सभी प्राणीक्षेत्र क्षेत्रज्ञ … Read more

१३.२५ – अन्ये त्वेवम् अजानन्तः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २४ श्लोक अन्ये त्वेवम् अजानन्तः श्रुत्वाऽन्येभ्य उपासते।तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः।। पद पदार्थ एवम् अजानन्तः – जो आत्मा को देखने के लिए पहले बताए गए तरीकों को नहीं जानते हैंअन्ये तु – कुछ अन्य लोगअन्येभ्य: – ज्ञानियों (बुद्धिमानों) सेश्रुत्वा – कर्म … Read more