१३.१० – मयि चानन्ययोगेन
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ९ श्लोक मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी |विविक्तदेशसेवित्वम् अरतिर्जनसंसदि || पद पदार्थ मयि – मुझमें, जो सर्वेश्वर हूँअनन्य योगेन – किसी अन्य के साथ संलग्न न होने के कारणअव्यभिचारिणी – अत्यंत दृढ़ स्थितिभक्ति: च – भक्तिविविक्त देश सेवित्वम् – एकांत में रहनाजन संसदि … Read more