१३.७ – अमानित्वम् अदंभित्वम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ६ श्लोक अमानित्वम् अदंभित्वम् अहिंसा क्षान्तिरार्जवम् |आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्म विनिग्रह: || पद पदार्थ अमानित्वम् – बड़ों का अनादर न करनाअदंभित्वम् – प्रसिद्धि के लिए दान में संलग्न न होनाअहिंसा – तीनों शक्तियों (मन, वाणी और कर्म) से किसी को नुकसान … Read more

१३.६ – इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ५ श्लोक इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं सङ्घातश्चेतना  धृति: |एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम्   || पद पदार्थ इच्छा – इच्छाद्वेष:-घृणासुखं – आनंददु:खं – दुःखचेतना धृति: सङ्घात: – प्राणियों का संग्रह जो आत्मा को बनाए रखता है (खुशी/दुख का अनुभव करने और आनंद … Read more

१३.५ – महाभूतान्यहङ्कारो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ४ श्लोक महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च ​​|इन्द्रियाणि दशैकं  च पञ्च चेन्द्रियगोचरा: || पद पदार्थ महाभूतानि – पाँच महान तत्वअहङ्कार: – भूतादि (जो उन तत्वों का कारण है)बुद्धि: – महान् (जो ऐसे अहङ्कार का कारण है)अव्यक्तम् एव च ​​- मूल प्रकृति (आदि … Read more

१३.४ – ऋषिभि: बहुधा गीतम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ३ श्लोक ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधैः पृथक् |ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितै : || पद पदार्थ (क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के बारे में यह सच्चा ज्ञान जो मैं तुम्हे समझाने जा रहा हूँ ) ऋषिभि : – ऋषियों द्वारा (जैसे पराशर और अन्य)बहुधा – अनेक … Read more

१३.३ – तत् क्षेत्रं यच्च यादृक् च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २ श्लोक तत् क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत् |स च यो यत्प्रभावश्च तत् समासेन मे श्रुणु || पद पदार्थ तत् क्षेत्रम् – वह शरीर जिसे पिछले दो श्लोकों में क्षेत्र के रूप में प्रकाश डाला गया हैयत् च – यह … Read more

१३.२ – क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १ श्लोक क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत |क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम || पद पदार्थ भारत – हे भरत वंश के वंशज!सर्व क्षेत्रेषु – सभी शरीरों में (जैसे कि दिव्य, मानव आदि)क्षेत्रज्ञं च अपि – (जैसे शरीर को क्षेत्र कहा जाता है) आत्मा भी … Read more

१३.१ – इदं शरीरं कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १२ श्लोक २० श्लोक श्री भगवानुवाचइदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रम् इत्यभिधीयते |एतद्यो  वेत्ति  तं प्राहु: क्षेत्रज्ञ इति तद्विद: || पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – श्री भगवान बोलेकौन्तेय – हे अर्जुन!इदं शरीरं – यह शरीरक्षेत्रम् इति – क्षेत्र के रूप में (आत्मा के … Read more

अध्याय १३ – क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग या पदार्थ – आत्मा भेद की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय १२ कृष्ण के मुँह में संसार भगवद् रामानुज आळवार् तिरुनगरी में , श्रीपेरुम्बुदूर् में , श्रीरंगम् में और तिरुनारायणपुरम् में >> अध्याय १४ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/13/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் – அத்யாயம் 13 (க்ஷேத்ர க்ஷேத்ரஜ்ஞ விபாக யோகம்)

ஸ்ரீ:  ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம:  ஸ்ரீமதே ராமாநுஜாய நம:  ஸ்ரீமத் வரவரமுநயே நம: ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் << அத்யாயம் 12 கீதார்த்த ஸங்க்ரஹம் பதினேழாம் ச்லோகத்தில், ஆளவந்தார் பதின்மூன்றாம் அத்யாயத்தின் கருத்தை, “பதின்மூன்றாம் அத்யாயத்தில், உடலின் தன்மை, ஜீவாத்மாவின் தன்மையை அடைவதற்கான வழிமுறைகள், ஆத்மாவும் உடலும் கட்டுப்பட்டிருப்பதற்கான காரணம் மற்றும் ஆத்மாவை உடலில் இருந்து வேறுபடுத்திப் பார்க்கும் முறை ஆகியவை பேசப்படுகின்றன.” என்று காட்டுகிறார். முக்கிய ச்லோகங்கள் ச்லோகம் 1 ஶ்ரீப⁴க³வானுவாச ।இத³ம் ஶரீரம் … Read more

Essence of SrI bhagavath gIthA – Chapter 13 (kshEthra kshEthragya vibhAga yOga)

SrI:  SrImathE SatakOpAya nama:  SrImathE rAmAnujAya nama:  SrImath varavaramunayE nama: Essence of SrI bhagavath gIthA << Chapter 12 In the seventeenth SlOkam of gIthArtha sangraham, ALavandhAr explains the summary of thirteenth chapter saying “In the thirteenth chapter – the nature of body, the means to attain the nature of jIvAthmA, the cause for bondage (of … Read more