१५.१० – उत्क्रामन्तं स्थितं वाऽपि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ९ श्लोक उत्क्रामन्तं स्थितं वाऽपि भुञ्जानं  वा गुणान्वितम् |विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुष : || पद पदार्थ गुणान्वितम् – (जैसा कि पहले बताया गया है) तीन गुणों से भरा हुआ शरीर के साथ होनाउत्क्रामन्तं – एक शरीर छोड़नास्थितं वाऽपि – (या) … Read more

१५.९ – श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ८ श्लोक श्रोत्रं चक्षु: स्पर्शनं च रसनं घ्राणम्  एव च ​​|अधिष्ठाय मनश्चायं विषयान्  उपसेवते || पद पदार्थ अयम् – यह आत्माश्रोत्रं – कानचक्षु: – आँखेंस्पर्शनं च – शरीररसनं – जीभघ्राणम् एव च ​​- नाक, आदि ये पाँच इन्द्रियोंमन: च – … Read more

१५.८ – शरीरं यदवाप्नोति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ७ श्लोक शरीरं यदवाप्नोति  यच्चाप्युत्क्रामतीश्वर : |गृहीत्वैतानि  संयाति  वायुर्गन्धानिवाशयात् || पद पदार्थ ईश्वर: – बंधी हुई आत्मा जो अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करती हैयत् शरीरं अवप्नोति – (पिछले शरीर को त्यागने के बाद) जिस नये शरीर में पहुँचती है (उस … Read more

१५.७ – ममैवांशो जीवलोके

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ६ श्लोक ममैवांशो  जीवलोके जीवभूत: सनातन: |मन: षष्ठानीन्द्रियाणि  प्रकृतिस्थानि कर्षति || पद पदार्थ सनातन:- अनादि काल से विद्यमान (हमेशा के लिए)मम अंश: एव (सन् ) – जीवात्माओं में से एक, जिनमें मेरी विशेषताएँ हैंजीवभूत: – एक बद्ध जीव (बंधी हुई … Read more

१५.६ – न तद् भासयते सूर्यो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ५ श्लोक न तद् भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावक: |यद् गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम  परमं मम || पद पदार्थ यद् गत्वा – जहाँ पहुँचने के बादन निवर्तन्ते – कोई वापसी नहीं है (जो वहाँ पहुँच गए ,उनके लिए संसार … Read more

१५.५ – निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ४ श्लोक निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा  अध्यात्मनित्या  विनिवृत्तकामा: |द्वन्द्वैर्विमुक्ता:: सुखदु:खसंज्ञै: गच्छन्त्यमूढा: पदमव्ययं तत् || पद पदार्थ (इस प्रकार मेरी शरण में आकर)निर्मानमोहा: – देहात्माभिमान (शरीर को स्वयं मानना) के भ्रम से मुक्त होकर जित सङ्गदोषा: – तीन गुणों से युक्त सांसारिक वस्तुओं … Read more

१५.४ – तम् एव चाद्यं पुरुषं प्रपद्येद्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ३ एवं ३.५ श्लोक तम् एव चाद्यं पुरुषं प्रपद्येद् यत: प्रवृत्ति: प्रसृता  पुराणी ।। पद पदार्थ आद्यं – हर वस्तु का आदि स्वामी होनायत: पुराणी प्रवृत्ति: प्रसृता – जिनसे, (आत्माओं का) तीन गुणों से सम्बन्दित विषयों के साथ संबंध अनादिकाल … Read more

१५.३ – अश्वत्थम् एनं सुविरूढमूलम् एवं & १५.३.५ – तत: पदं तत्परिमार्गितव्यं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक २.५ श्लोक अश्वत्थमेनं  सुविरूढमूलम्  असङ्गशस्त्रेण दृढेन  छित्वा || तत: पदं तत्परिमार्गितव्यं  यस्मिन् गता  न निवर्तन्ति भूय: | पद पदार्थ एनं – पहले समझाया गयासुविरूढमूलम् – गहराई से स्थिर जड़ वालेअश्वत्थम् – पीपल वृक्ष (अर्थात, संसार)दृढेन – दृढ़ (अच्छे ज्ञान होने … Read more

१५.२.५ – न रूपम् अस्येह तथोपलभ्यते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक २ श्लोक न रूपमस्येह तथोपलभ्यते नान्तो  न चादिर्न च संप्रतिष्ठा  | पद पदार्थ अस्य – इस वृक्ष कारूपम् – पूर्वकथित रूपइह – इस सांसारिक लोक में संसारियों (भौतिकवादी लोगों) द्वारातथा न उपलभ्यते – नहीं समझा जाता है , जैसा कि … Read more

१५.१.५ – अधश्चोर्ध्वं च प्रसृतास्तस्य शाखा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक १ श्लोक अधश्चोर्ध्वं च प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवाला: | पद पदार्थ तस्य – उस वृक्ष कीशाखा:- (कुछ और) शाखाएँगुणप्रवृद्धा: – सत्व, रजस ,तमस जैसे गुणों से पोषितविषयप्रवाला: – अंकुरित होना शब्दं (ध्वनि ) जैसे इन्द्रिय वस्तुओं सेअधश्च च उर्ध्वं च … Read more