१६.६ – द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ५ श्लोक द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन् दैव आसुर एव च।दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे श्रृणु।। पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!अस्मिन् लोके – [भौतिकवादी] कर्मों की इस दुनिया मेंभूत सर्गौ – प्राणियों की रचनादैव: – देवता से संबंधितआसुर एव च … Read more

१६.५ – मा शुचः सम्पदं दैवीम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ४.५ श्लोक मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव।। पद पदार्थ पाण्डव – हे पाण्डुपुत्र!मा शुचः – शोक मत करो (यह सोचकर कि “क्या मैं असुर योनि में जन्मा हूँ?”)दैवीं सम्पदम् अभिजात: असि – तुम देवताओं की सम्पत्ति को पूर्ण करने के … Read more

१६.४.५ – दैवी सम्पद्विमोक्षाय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ४ श्लोक दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता। पद पदार्थ दैवी सम्पत् – देवताओं का धन (अर्थात, मेरे आदेशों का पालन करना)विमोक्षाय मता – संसार से मुक्ति की ओर ले जाता हैआसुरी (सम्पत्) – असुरों का धन (अर्थात् मेरी आज्ञा का उल्लंघन … Read more

१६.४ – दम्भो दर्पोऽभिमानश्च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ३ श्लोक दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्।। पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!आसुरीं सम्पदम् अभिजातस्य – जिनके पास असुरों का धन है (अर्थात भगवान की आज्ञा का उल्लंघन करना)दम्भ: – प्रसिद्धि पाने के लिए धर्म का पालन … Read more

१६.३ – तेजः क्षमा धृतिः शौचम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक २ श्लोक तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।। पद पदार्थ तेजः – (बुरे लोगों द्वारा) अपराजित रहनाक्षमा – (नुकसान पहुँचाने वालों के प्रति भी) सहनशीलता रखनाधृतिः – (भयंकर परिस्थितियों में भी) दृढ़ रहनाशौचं – (शास्त्र में बताए गए) … Read more

१६.२ – अहिंसा सत्यम् अक्रोध:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १ श्लोक अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्।दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्।। पद पदार्थ अहिंसा – किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुँचानासत्यं – सत्य बोलना जिससे सभी प्राणियों का कल्याण होअक्रोध: – क्रोध (जिससे दूसरों को हानि पहुँचती है) न करनात्याग: – त्यागना … Read more

१६.१ – अभयं सत्त्वसंशुद्धिः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १५ श्लोक २० श्लोक श्री भगवानुवाच अभयं सत्त्वसंशुद्धिः ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।। पद पदार्थ श्री भगवानुवाच – भगवान श्री कृष्ण ने कहाअभयं – निर्भयतासत्त्व संशुद्धिः – हृदय की पवित्रताज्ञान योग व्यवस्थितिः – आत्मा (जो पदार्थ से भिन्न है) पर ध्यान केन्द्रित … Read more

अध्याय १६ – दैवासुर सम्पत् विभागयोगः या ईश्वरीय और अधार्मिक प्रकृति की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक २० आधार – http://githa.koyil.org/index.php/16/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் – அத்யாயம் 16 (தைவாஸுர ஸம்பத் விபாக யோகம்)

ஸ்ரீ:  ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம:  ஸ்ரீமதே ராமாநுஜாய நம:  ஸ்ரீமத் வரவரமுநயே நம: ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் << அத்யாயம் 15 கீதார்த்த ஸங்க்ரஹம் இருபதாம் ச்லோகத்தில், ஆளவந்தார் பதினாறாம் அத்யாயத்தின் கருத்தை, “பதினாறாம் அத்யாயத்தில், மனிதர்களில் தேவ மற்றும் அஸுர என்ற பிரிவுகளை விளக்கிய பிறகு, அடைய வேண்டிய உண்மையைப் பற்றிய ஞானத்தை மற்றும் அவ்வழியைக் கைக்கொள்வதைப் பற்றியும் ஸ்தாபிப்பதற்காக ஆத்மாக்கள் சாஸ்த்ரத்துக்கு வசப்பட்டிருப்பதைப் பற்றிய உண்மை பேசப்படுகிறது” என்று காட்டுகிறார். முக்கிய ச்லோகங்கள் … Read more

Essence of SrI bhagavath gIthA – Chapter 16 (dhaivAsura sampath vibhAga yOga)

SrI:  SrImathE SatakOpAya nama:  SrImathE rAmAnujAya nama:  SrImath varavaramunayE nama: Essence of SrI bhagavath gIthA << Chapter 15 In the twenteeth SlOkam of gIthArtha sangraham, ALavandhAr explains the summary of sixteenth chapter saying “In the sixteenth chapter – after explaining the classification of dhEva (saintly) and asura (cruel) (among the humans) to establish the knowledge … Read more