१७.१० – यातयामं गतरसं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ९ श्लोक यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत् |उच्छिष्टमपि  चामेध्यं  भोजनं तामसप्रियम् || पद पदार्थ यात यामं – बासीगत रसं – प्राकृतिक स्वाद खो चुकापूति – बदबूदारपर्युषितं च – लंबे समय तक रखे रहने के कारण स्वाद बदल जानाउच्छिष्टम् – … Read more

१७.९ – कट्वमललवणात्युष्ण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ८ श्लोक कट्वमललवणात्युष्ण  तीक्ष्ण रूक्षविदाहिन: |आहारा  राजसस्येष्टा   दु:खशोकामयप्रदा: || पद पदार्थ कट्वमल लवण अति उष्ण तीक्ष्ण रूक्षविदाहिन: – अधिक कड़वा, खट्टा, नमकीन, अति गरम, तीखा, सूखा और जलन वालेअहारा:- खाद्य पदार्थराजसस्य इष्टा: – उन लोगों को प्रिय है जिनके … Read more

१७.८ – आयु: सत्व बलारोग्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ७ श्लोक आयुस्सत्व  बलारोग्य सुखप्रीतिविवर्धना: |रस्या: स्निग्धा: स्थिरा  हृद्या आहारास्सात्विकप्रिया: || पद पदार्थ आयु: सत्व बलारोग्य सुखप्रीतिविवर्धना: – जीवन, ज्ञान, शक्ति, स्वास्थ्य, सुख और आनंद का पोषणरस्या: – मिठास से भरेस्निग्धा:- चिकनापन से युक्त स्थिरा: – स्थायी भलाई की ओर … Read more

१७.७ – आहारस् त्वपि सर्वस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ६ श्लोक आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रिय: |यज्ञस्तपस्तथा  दानं तेषां  भेदमिमं श्रुणु || पद पदार्थ सर्वस्य – सभी जीवों के लिएआहार: अपि – भोजन भीत्रिविध: तु – तीन श्रेणियों (सत्व, रजस और तमस) के आधार परप्रिय: भवति – प्रिय हैतथा – … Read more

१७.६ – कर्शयन्त: शरीरस्थम् 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ५ श्लोक कर्शयन्त: शरीरस्थं भूतग्राममचेतस:  |मां चैवान्तः शरीरस्थं तान् विद्ध्यासुरनिश्चयान् || पद पदार्थ अचेतस: – अज्ञानी होने के कारणशरीरस्थं भूतग्रामम् – उनके शरीर के पाँच महान तत्वकर्शयन्त: – परेशान करने वालेअन्त: शरीरस्थं मां च एव – उस शरीर में निवास करती आत्मा जो … Read more

१७.५ – अशास्त्रविहितं घोरम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ४ श्लोक अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जना: |दम्भाहङ्कारसंयुक्ता: कामरागबलान्विता: || पद पदार्थ ये जना: – वे पुरुषअशास्त्र विहितं – वह जो शास्त्र में निर्धारित नहीं हैघोरं – कठोरतप: तप्यन्ते – तपस्या और यज्ञ करते हैंदम्भ अहंकार संयुक्ता: – अभिमान और … Read more

१७.४ – यजन्ते सात्विका देवान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ३ श्लोक यजन्ते सात्विका देवान् यक्षरक्षांसि राजसा: |प्रेतान् भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जना: || पद पदार्थ सात्विका: – जिनके पास सत्व गुण (अच्छाई) प्रचुर मात्रा में है, और इसी प्रकार की श्रृद्धा हैदेवान् – देवताओं कायजन्ते – पूजा करते हैं ;राजसा: – जिनके … Read more

१७.३ – सत्वानुरूपा सर्वस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २ श्लोक सत्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत |श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्ध: स एव स: || पद पदार्थ भारत – हे भरत कुल के वंशज!सर्वस्य – सबके लिएसत्वानुरूपा – उनके इच्छा के अनुसारश्रद्धा भवति – श्रद्धा होती हैअयं पुरुष:- यह व्यक्तिश्रद्धामय: – … Read more

१७.२ – त्रिविधा भवति श्रद्धा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १ श्लोकश्री भगवान उवाचत्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा |सात्विकी राजसी  चैव तामसी  चेति तां श्रुणु || पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – श्री भगवान बोलेदेहिनां – उनके लिए जिनके पास (भौतिकवादी) शरीर हैस्वभावजा सा श्रद्धा – विभिन्न विषयों में … Read more

१७.१ – ये शास्त्रविधिम् उत्सृज्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १६ श्लोक २४ श्लोक अर्जुन उवाच ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयाऽन्विता: |तेषां  निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तम: || पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन बोलाकृष्ण – हे कृष्ण!ये – वेशास्त्र विधिम् उत्सृज्य – शास्त्र के नियमों की अवहेलना करके भीश्रद्धया अन्विता: – … Read more