१८.४९ – असक्तबुद्धि: सर्वत्र
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ४८ श्लोक असक्तबुद्धि: सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृह: |नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां सन्न्यासेनाधिगच्छति || पद पदार्थ सर्वत्र – कर्म और उसके फल दोनों मेंअसक्त बुद्धि: – आसक्ति रहितजितात्मा – मन पर विजय प्राप्त करने वालाविगतस्पृह: – (अपने कर्तापन की) इच्छा न रखने वालासन्न्यासेन – … Read more