१६.१८ – अहंकारं बलं दर्पं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १७ श्लोक अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिता: |मामात्मपरदेहेषु  प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः || पद पदार्थ अहंकारं – अहंकार (यह सोचना कि सब कुछ अपने क्षमता पर पूरा किया जा सकता है)बलं – (कि मेरी क्षमता सब कुछ प्राप्त करने के लिए … Read more

१६.१७ – आत्मसम्भाविता: स्तब्धा:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १६ श्लोक आत्मसम्भाविता: स्तब्धा: धनमानमदान्विता: |यजन्ते नामयज्ञैस्ते  दम्भेनाविधिपूर्वकम् || पद पदार्थ आत्म सम्भाविता: – स्वयं की प्रशंसा करनास्तब्धा:- (ऐसी आत्मप्रशंसा के कारण) घमंड से भरेधनमान मदन्विता: – धन, ज्ञान, पारिवारिक विरासत के कारण उत्पन्न होने वाला अभिमान रखनाते – वे … Read more

१६.१६ – अनेकचित्तविभ्रान्ता

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १५ श्लोक अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृता : |प्रसक्ता : कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ || पद पदार्थ अनेक चित्त विभ्रान्ता: – विभिन्न विचारों से परेशान होकरमोहजाल समावृता: – विभिन्न भ्रांतियों से घेरकरकाम भोगेषु – कामुक सुखों मेंप्रसक्ता: – गहराई से संलग्न रहकर (ऐसी स्थिति … Read more

१६.१५ – आढ्योऽभिजनवान् अस्मि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १४ श्लोक आढ्योऽभिजनवान् अस्मि कोऽन्योऽस्ति  सदृशो  मया |यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञान  विमोहिता : || पद पदार्थ (अहम्) आढ्य: अस्मि – (मैं) स्वाभाविक रूप से धनवान हूँ ;(अहम्) अभिजनवान अस्मि – (मैं) स्वाभाविक रूप से उच्च पारिवारिक विरासत वाला हूँ;मया सदृश: … Read more

१६.१४ – असौ मया हत: शत्रुर्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १३ श्लोक असौ मया हत: शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि |ईश्वरोऽहमहं  भोगी सिद्धोऽहं  बलवान्सुखी || पद पदार्थ मया – मेरे द्वारा (जो बहुत शक्तिशाली हूँ)असौ शत्रु: – यह (मेरा) शत्रुहत: – मारा गया है;अपरान् अपि च (शत्रून्) – और कई अन्य शत्रुओं कोहनिषये … Read more

१६.१३ – इदम् अद्य मया लब्धं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १२ श्लोक इदमद्य  मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम् |इदमस्तीदमपि  मे भविष्यति पुनर्धनम्  || पद पदार्थ इदम् – ये सब (भूमि, सन्तान आदि)अद्य – अबमया – मेरी क्षमता सेलब्धं – प्राप्त हुआइमं मनोरथम् – इस अभीष्ट वस्तु कोप्राप्स्ये – प्राप्त करूँगा (अपनी … Read more

१६.१२ – आशापाशशतैर्बद्धाः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ११ श्लोक आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः।ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्।। पद पदार्थ (आसुरी लोग)आशा पाश शतै: बद्धाः – इच्छाओं के नाम की सैकड़ों रस्सियों से बंधे होने के कारणकाम क्रोध परायणाः – काम तथा क्रोध में भली-भांति संलग्न होकरकाम भोगार्थम् – अपनी वासना की पूर्ति … Read more

१६.११ – चिन्तामपरिमेयां च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १० श्लोक चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः।कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिताः।। पद पदार्थ (आसुरी लोग)अपरिमेयां – असीमितप्रलयान्तां च – विद्यमान तथा प्रलयकाल तक प्राप्त होने वालीचिन्तां – चिंताउपाश्रिताः – करते हुएकामोप भोग परमा: – वासना को ही सर्वोच्च लक्ष्य मानकरएतावत् इति निश्चिताः – ‘यही … Read more

१६.१० – काममाश्रित्य दुष्पूरं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ९ श्लोक काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः।मोहाद्गृहीत्वाऽसद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः।। पद पदार्थ (राक्षसी लोग)दुष्पूरं – अतृप्तकामं – इच्छाओंआश्रित्य – पकड़कर (उन्हें पूरा करने के लिए)मोहात् – अज्ञान के कारणअसद्ग्राहान् – अवैध तरीकों से अर्जित धनगृहीत्वा – को पकड़करअशुचि व्रताः – शास्त्रों में स्वीकृत नहीं किए … Read more

१६.९ – एतां दृष्टिम् अवष्टभ्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ८ श्लोक एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः।प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽशुभा:।। पद पदार्थ (राक्षसी लोग)एतां दृष्टिं – इस कुटिल दृष्टिअवष्टभ्य – को धारण करकेनष्टात्मान: – आत्मा (जो शरीर से भिन्न है) को न देखकरअल्प बुद्धयः – क्षुद्रबुद्धि वाले होकर (जो शरीर ज्ञेय है और … Read more