१८.२७ – रागी कर्मफलप्रेप्सु:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक २६ श्लोक रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः।हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः।। पद पदार्थ रागी – प्रसिद्धि चाहता हैकर्म फल प्रेप्सु: – कर्म के फल की इच्छा रखता हैलुब्ध: – कृपण (जो कर्म करने के लिए आवश्यक धन खर्च करना नहीं चाहता ) हैहिंसात्मक: … Read more

१८.२६ – मुक्तसङ्गोऽनहंवादी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक २५ श्लोक मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः।सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते।। पद पदार्थ मुक्तसङ्ग: – कर्मफल की आसक्ति के बिनाअनहंवादी – “मैं कर्ता हूँ” इस अभिमान के बिनाधृति उत्साह समन्वितः – धृति अर्थात् अपरिहार्य दुःख को सहन करने की क्षमता के साथ, उत्साह अर्थात् … Read more

१८.२५ – अनुबन्धं क्षयं हिंसाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक २४ श्लोक अनुबन्धं क्षयं हिंसामनवेक्ष्य च पौरुषम्।मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते।। पद पदार्थ यत् कर्म – जो कर्मअनुबन्धं – उसके बाद आने वाले दुःखक्षयं – धन की हानिहिंसां – प्राणियों को (उसके कारण) होने वाले कष्टपौरुषं च – कार्य पूरा करने की … Read more

१८.२४ – यत् तु कामेप्सुना कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक २३ श्लोक यत्तु कामेप्सुना कर्म साहङ्कारेण वा पुनः।क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम्।। पद पदार्थ यत् कर्म तु – जो कर्मकामेप्सुना – फल की आसक्ति के साथपुनः साहङ्कारेण वा – “मैं कर्ता हूँ” इस अभिमान के साथबहुलायासं – अत्यधिक प्रयास के साथक्रियते – … Read more

१८.२३ – नियतं सङ्गरहितम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक २२ श्लोक नियतं सङ्गरहितमरागद्वेषतः कृतम्।अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्यते।। पद पदार्थ यत् कर्म – जो कर्मनियतं – उचित है (व्यक्ति के वर्ण और आश्रम के अनुसार)सङ्गरहितं – आसक्ति (जैसे कि “मैं कर्ता हूँ”, “यह मेरा कर्म है”) के बिनाअरागद्वेषतः कृतम् – प्रसिद्धि … Read more

१८.२२ – यत् तु कृत्स्नवत् एकस्मिन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक २१ श्लोक यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन् कार्ये सक्तमहेतुकम्।अतत्त्वार्थवदल्पं च तत्तामसमुदाहृतम्।। पद पदार्थ यत् तु – वह ज्ञानएकस्मिन् कार्ये – किसी कार्य में (मृत लोगों और भूतों की पूजा करना जिससे सबसे कम परिणाम मिलते हैं)कृत्स्नवत् – जैसे कि पूर्ण परिणाम देने वाले … Read more

१८.२१ – पृथक्त्वेन तु यत् ज्ञानं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक २० श्लोक पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विदान्।वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम्।। पद पदार्थ सर्वेषु भूतेषु – सभी प्राणियों में विभिन्न शरीरों में, जैसे ब्राह्मण आदिपृथक्त्वेन – उनके विशिष्ट स्वभाव (ब्राह्मण आदि होने) के कारणपृथग्विदान् – उनके विशेषताओं (जैसे गोरा, काला, … Read more

१८.२० – सर्वभूतेषु येनैकं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १९ श्लोक सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते।अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम्।। पद पदार्थ येन – जिस ज्ञान के द्वाराविभक्तेषु – अनेक प्रकार के गुणसर्व भूतेषु – सभी प्राणियों में है (ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वर्गीकरण वाले, जो कर्म में लगे हुए हैं)अविभक्तं – … Read more

१८.१९ – ज्ञानं कर्म च कर्ता च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १८ श्लोक ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदतः।प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि।। पद पदार्थ गुण संख्याने – गुणों (जैसे सत्व, रजस् और तमस् ) के प्रभाव को गिनते समयगुण भेदतः – गुणों की प्रकृति के अनुसारज्ञानं – ज्ञान (करने वाले … Read more

१८.१८ – ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १७ श्लोक ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना।करणं कर्म कर्तेति त्रिविधः कर्मसंग्रहः।। पद पदार्थ कर्म चोदना – कर्म के सम्बन्ध में वेद के नियम (अनुष्ठानात्मक पूजाएँ जैसे कि ज्योतिष्टोम आदि)ज्ञानं – ज्ञान (कर्म के बारे में)ज्ञेयं – जो कर्म किया जाना … Read more