६.३६ – असंयतात्मना योगो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३५ श्लोक असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः ।वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः ॥ पद पदार्थ असंयतात्मना – जो अपने मन को नियंत्रित नहीं कर सकतायोग:- योग (समदृष्टि रखने का)दुष्प्राप:- प्राप्त करना कठिन हैइति – ऐसामे मति: – मेरा निष्कर्ष हैतु … Read more

६.३५ – असंशयं महाबाहो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३४ श्लोक श्री भगवान् उवाचअसंशयं  महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥ पद पदार्थ श्री भगवान् उवाच – श्री भगवान बोले महाबाहो – हे शक्तिशाली भुजाओं वालेकौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!चलं मन – अस्थिर मनदुर्निग्रहं – नियंत्रित करना … Read more

६.३४ – चञ्चलम् हि मनः कृष्ण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३३ श्लोक चञ्चलं  हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् ।तस्याहं  निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ॥ पद पदार्थ हि – क्योंकिमनः – मनचञ्चलं- (स्वाभाविक रूप से) डगमगाता हुआ,अस्थिर हैबलवद् – बलवान(इसलिए) प्रमाथि – भ्रमित दृढम् – दृढ़ (हमें सांसारिक सुखों की ओर खींचने … Read more

६.३३ – योऽयं योगस् त्वया प्रोक्तः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३२ श्लोक अर्जुन उवाच योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन ।एतस्याहं  न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं  स्थिराम् ।। पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहामधुसूदन कृष्ण – हे कृष्ण जो राक्षस मधु का वध कियाय: अयं साम्येन योग: – यह योग जो सर्वत्र … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय ५ (कर्म सन्यास योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना <<अध्याय ४ गीतार्थ संग्रह के नौवे श्लोक में स्वामी आळवन्दार् , भगवद्गीता के पांचवे अध्याय की सार को दयापूर्वक समझाते हैं , ” पांचवे अध्याय में कर्म योग के उपयोगिता , लक्ष्य को शीघ्रता से प्राप्त करने का इसका पहलू , उसके … Read more

६.३२ – आत्मौपम्येन सर्वत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३१ श्लोक आत्मौपम्येन सर्वत्र  समं  पश्यति योऽर्जुन ।सुखं  वा यदि वा दु:खं  स योगी परमो मतः ॥ पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन!सर्वत्र –  सभी जगह मेंआत्मौपम्येन – क्योंकि  आत्मा में समानता है (जैसे कि पहले बताया गया है)सर्वत्र – … Read more

६.३१ – सर्वभूतस्थितम् यो माम् 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३० श्लोक सर्वभूतस्थितं  यो मां भजत्येकत्वमास्थितः ।सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥ पद पदार्थ सर्व भूत स्थितं मां – मैं जो सभी आत्माओं में उपस्थित हूँ  (पहले बताए गए योग की स्थिति में समानता को देखते हुए)एकत्वं  आत्स्थितः – … Read more

६.३० – यो माम् पश्यति सर्वत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २९ श्लोक यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।तस्याहं  न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥ पद पदार्थ य: – जो कोई मां  -मुझेसर्वत्र पश्यति – सभी आत्माओं में (मेरे गुणों को) देखता हैसर्वं  च – सभी आत्माओं कोमयि … Read more

६.२९ – सर्वभूतस्थम् आत्मानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २८ श्लोक सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि ।ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥ पद पदार्थ योग युक्तात्मा – जिसका मन योग अभ्यास में लगा हैसर्वत्र – सभी आत्माओं में (आत्मा जो विषयों से संबंधित नहीं है)समदर्शन: – समान रूप की स्थिति को देखना (ज्ञान, … Read more

६.२८ – युञ्जन् एवम् सदात्मानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २७ श्लोक युञ्जन्नेवं  सदात्मानं योगी विगतकल्मष:।सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं  सुखमश्नुते ॥ पद पदार्थ एवं – जैसा कि पहले उल्लेख किया गया हैआत्मानं युञ्जन् – आत्मा में लगे रहनाविगत कल्मष: – (उसके परिणामस्वरूप) सभी पापों से मुक्ति पाकरयोगी – वह जो आत्म-साक्षात्कार का … Read more