१.१० – अपर्याप्तम्

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १ < < अध्याय १ श्लोक ९ श्लोक अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् ।पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्‌ ॥ पद  पदार्थ तत् – इस प्रकारभीष्माभिरक्षितम् – भीष्म द्वारा रक्षितअस्माकं बलं– हमारी सेनाअपर्याप्तं – अपर्याप्त (उनकी सेना को जीतने के लिए )भीमाभिरक्षितम् – भीम द्वारा रक्षितइतं एतेशां बलं तु – … Read more

१.९ – अन्ये च बहव:

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १ < < अध्याय १ श्लोक ८ श्लोक अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्त जीविताः ।नाना शस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्दविशारदाः ॥ पद  पदार्थ अन्ये  – शेषबहवः शूरा: च – और बहुत से वीर पुरुषमदर्थे – मेरे लिएत्यक्त जीविता: – अपने प्राणों को त्याग दिए नाना शस्त्रप्रहरणा : … Read more

१.८ – भवान् भीष्मश्च

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १ << अध्याय १ श्लोक ७ श्लोक भवान् भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च  समितिञ्जयः।अश्वत्थामा विकर्णश्च  सौमदत्तिस्तथैव  च ॥ पद पदार्थ  भवान् – आप (द्रोणाचार्य)भीष्म: च – और भीष्मकर्ण: च – और कर्णसमितिञ्जय : कृपा: च – विजयी कृपाचार्यअश्वत्थामा – द्रोणाचार्य के पुत्र, अश्वत्थामाविकर्ण :  च – और  … Read more

१.७ – अस्माकं तु

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १ << अध्याय १ श्लोक ६ श्लोक अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम |नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान् ब्रवीमि ते ॥ पद पदार्थ द्विजोत्तम – हे द्विजों (ब्राह्मणों )के नेता!अस्माकं तु – हमारे बीचमम सैन्यस्य – मेरी सेना कीविशिष्टा: नायक: ये – वे श्रेष्ठ सेनापतियों … Read more

अध्याय १ – अर्जुन विषाद योग

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नमः <<प्रस्तावना गीता भाष्य के लिए आळवन्दार पर श्री रामानुज का तनियन् (आह्वान) यत् पदाम्भोरुहद्यान विद्वस्तासेश कल्मशःवस्तुतामुपया दोहं यामुनेयम् नमामितम् मैं यामुनाचार्य की पूजा करता हूँ जिनकी दया से मेरे दोष दूर हो गए हैं और मैं एक पहचानने योग्य वस्तु बन गया हूँ | अर्थात्, पहले … Read more

श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता महाभारत का सबसे अनिवार्य अंग है | जब अधार्मिक एवं बुरी ताकतों के कारण धरती माँ का भोज बढ़ता गया तो श्रीमन नारायण, द्वापर युग के अंतिम समय में श्री कृष्ण का अवतार लिए | श्री कृष्ण परमात्मा ने खुद कहा है , अवतार … Read more

गीतार्थ संग्रह – 8

श्री: श्रीमते शठकोपाये नम: श्रीमते रामानुजाये नम: श्रीमदवरवरमुनये नम: पूर्ण श्रंखला << पूर्व अनुच्छेद सारांश श्लोक 32 एकांतत्यंतत दास्यैकरथीस् तत्पदमाप्नुयात् | तत्प्रधानमिदम् शास्त्रमिति गीतार्थसंग्रह: || परमपद – श्रीमन्नारायण भगवान का दिव्य धाम, जो परम सौभाग्य है Listen शब्दार्थ (पुत्तुर कृष्णमाचार्य स्वामी के तमिल अनुवाद पर आधारित) एकांत अत्यंत दास्यैकरथी: – परमैकांति जो सदा मात्र ऐसे … Read more

गीतार्थ संग्रह – 7

श्री: श्रीमते शठकोपाये नम: श्रीमते रामानुजाये नम: श्रीमदवरवरमुनये नम: पूर्ण श्रंखला << पूर्व अनुच्छेद ज्ञानी की महानता श्लोक 29 ज्ञानी तु परमैकांती तदायत्तात्म जीवन: | तत्–सम्श्लेष–वियोगैक–सुखदुःखकस्तदेगधि: || श्री शठकोप स्वामीजी – ज्ञानियों में श्रेष्ठ Listen शब्दार्थ (पुत्तुर कृष्णमाचार्य स्वामी के तमिल अनुवाद पर आधारित) परमैकांती ज्ञानी तु – ज्ञानी, जो पुर्णतः भगवान को समर्पित है … Read more

गीतार्थ संग्रह – 6

श्री: श्रीमते शठकोपाये नम: श्रीमते रामानुजाये नम: श्रीमदवरवरमुनये नम: पूर्ण श्रंखला << पूर्व अनुच्छेद कर्म, ज्ञान, भक्ति योगों की व्याख्या श्लोक 23 कर्मयोगस्तपस्तीर्थदानयज्ञादिसेवनम् | ज्ञानयोगोजितस्वान्तै:परिशुद्धात्मनी स्थिति: || Listen शब्दार्थ (पुत्तुर कृष्णमाचार्य स्वामी के तमिल अनुवाद पर आधारित) कर्म योग: – कर्म योग तपस् तीर्थ दान यज्ञादि सेवनम् – सतत तपस्या, तीर्थ यात्रा, दान, यज्ञ आदि … Read more

गीतार्थ संग्रह – 5

श्री: श्रीमते शठकोपाये नम: श्रीमते रामानुजाये नम: श्रीमदवरवरमुनये नम: पूर्ण श्रंखला << पूर्व अनुच्छेद तृतीय षट्खंड के प्रत्येक अध्याय का सारांश श्लोक 17 देहस्वरुपमात्माप्तिहेतुरात्मविशोधनं | बंधहेतुर्वीवेकश्च त्रयोदश उधिर्यते || Listen शब्दार्थ (पुत्तुर कृष्णमाचार्य स्वामी के तमिल अनुवाद पर आधारित) देह स्वरुपं – देह का स्वरुप आत्माप्ति हेतु: – जीवात्मा के स्वरुप को प्राप्त करने के … Read more