१.२३ – योत्स्यमानान् अवेक्षेSहम्

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १ 

< < अध्याय १  श्लोक २२

श्लोक

योत्स्यमानान् अवेक्षेSहं या एतेSत्र समागताः ।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुध्देर्युध्दे प्रियचिकीर्षवः ॥

पद पदार्थ 

दुर्बुध्दे: – दुष्टचित्त
धृतराष्ट्रस्य – दुर्योधन (धृतराष्ट्र के पुत्र) के लिए
युद्धे – युद्ध में
प्रिय चिकिर्षव:- उसे प्रसन्न करने की इच्छा से 
अत्र  – इस युद्ध क्षेत्र में
ये एते – जो  भीष्म, द्रोण आदि 
समागता: – इकट्ठे हुए
योत्स्यमानान् –  हमसे युद्ध करने की चाह से 
अहम् अवेक्षे – मुझे देखने दो
(इति ) अर्जुन उवाच – इस प्रकार अर्जुन ने कहा

सरल अनुवाद

(अर्जुन ने इस प्रकार कहा) दुष्ट-चित्त दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए, हमसे युद्ध करने की चाह से भीष्म, द्रोण और अन्य जो युद्ध के मैदान में इकट्ठे हुयें हैं ,(उन्हें) मुझे देखने दो  |

>>अध्याय १ श्लोक १.२

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुजदासि

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