१३.२०.५ – पुरुषः प्रकृतिस्थो हि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २० श्लोक पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान् गुणान् । पद पदार्थ प्रकृतिस्थ: – पदार्थ से संबद्ध होने के कारणपुरुषः – जीवात्माप्रकृतिजान् – ऐसे संबंध के कारण उत्पन्नगुणान् – गुणों (सत्व, रजस् और तमस्) के माध्यम से उत्पन्न होने वाले सुख/दुःखभुङ्क्ते … Read more

१३.२० – कार्यकारणकर्तृत्वे

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १९ श्लोक कार्यकारणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते।पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते।। पद पदार्थ कार्य कारण कर्तृत्वे – शरीर और ग्यारह इंद्रियों द्वारा किए जाने वाले कार्योंप्रकृति: – प्रकृति (जो जीवात्मा द्वारा व्याप्त है)हेतुः – कारण के रूप मेंउच्यते – समझाया गया हैपुरुषः – … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय १२ (भक्ति योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय ११ गीता संग्रह के सोलहवें श्लोक में आळवन्दार स्वामीजी बारहवें अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “बारहवें अध्याय में, आत्म उपासना (स्वयं की आत्मा की खोज में संलग्न) की तुलना में भगवान के प्रति भक्ति योग की महानता, ऐसी … Read more

१३.१९ – प्रकृतिं पुरुषं चैव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १८ श्लोक प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि।विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसंभवान्।। पद पदार्थ प्रकृतिं च – मूल प्रकृतिपुरुषं अपि उभौ एव – और जीवात्मा दोनोंअनादि विद्धि – जानो कि दोनों अनादि काल से एक साथ हैंविकारान् च – परिवर्तन (जैसे कि … Read more

१३.१८ – इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १७ श्लोक इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः।मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते।। पद पदार्थ इति – इस प्रकारक्षेत्रं – शरीर जिसे क्षेत्र के नाम से जाना जाता हैतथा ज्ञानं – आत्मा के बारे में ज्ञान प्राप्त करने के साधनज्ञेयं – आत्मा … Read more

१२.१० – अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ९ श्लोक अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव।मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि।। पद पदार्थ अभ्यासे अपि असमर्थ असि – यदि तुममें अपने मन को मुझमें लगाने की क्षमता नहीं हैमत् कर्म परम: भव – मेरे कार्यों में बड़ी निष्ठा से संलग्न रहोमदर्थं कर्माणि कुर्वन् … Read more

१२.९ – अथ चित्तं समाधातुम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ८ श्लोक अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम्।अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय।। पद पदार्थ धनञ्जय – हे अर्जुन!मयि – मुझमेंअथ स्थिरं चित्तं समाधातुं न शक्नोषि – यदि तुम अपने मन को दृढ़ता से स्थापित करने में असमर्थ होतत: – तो … Read more

१२.८ – मय्येव मन आधत्स्व

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ७ श्लोक मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः।। पद पदार्थ (इस कारण से, जिसे पहले समझाया गया था) मयि एव – केवल मुझमेंमन आधत्स्व – अपना हृदय/मन लगाओमयि – मुझमेंबुद्धिं निवेशय – (अंतिम लक्ष्य के … Read more

१२.७ – तेषामहं समुद्धर्ता

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ६ श्लोक तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्।। पद पदार्थ मयि आवेशित चेतसां तेषां – जो लोग अपना हृदय मुझमें केन्द्रित रखते हैंअहं – (मेरी प्राप्ति में बाधक होने के कारण)मृत्यु संसार सागरात् – इस भौतिक संसार से जो अज्ञान का … Read more

१२.६ – ये तु सर्वाणि कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ५ श्लोक ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते।। पद पदार्थ [पार्थ – हे अर्जुन !]ये तु – लेकिन जोसर्वाणि कर्माणि – सभी गतिविधियाँ (जैसे खाना, अग्नि अनुष्ठान आदि)मयि संन्यस्य – मुझे अर्पण करने के रूप … Read more