१७.७ – आहारस् त्वपि सर्वस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ६ श्लोक आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रिय: |यज्ञस्तपस्तथा  दानं तेषां  भेदमिमं श्रुणु || पद पदार्थ सर्वस्य – सभी जीवों के लिएआहार: अपि – भोजन भीत्रिविध: तु – तीन श्रेणियों (सत्व, रजस और तमस) के आधार परप्रिय: भवति – प्रिय हैतथा – … Read more

१७.६ – कर्शयन्त: शरीरस्थम् 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ५ श्लोक कर्शयन्त: शरीरस्थं भूतग्राममचेतस:  |मां चैवान्तः शरीरस्थं तान् विद्ध्यासुरनिश्चयान् || पद पदार्थ अचेतस: – अज्ञानी होने के कारणशरीरस्थं भूतग्रामम् – उनके शरीर के पाँच महान तत्वकर्शयन्त: – परेशान करने वालेअन्त: शरीरस्थं मां च एव – उस शरीर में निवास करती आत्मा जो … Read more

१७.५ – अशास्त्रविहितं घोरम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ४ श्लोक अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जना: |दम्भाहङ्कारसंयुक्ता: कामरागबलान्विता: || पद पदार्थ ये जना: – वे पुरुषअशास्त्र विहितं – वह जो शास्त्र में निर्धारित नहीं हैघोरं – कठोरतप: तप्यन्ते – तपस्या और यज्ञ करते हैंदम्भ अहंकार संयुक्ता: – अभिमान और … Read more

१७.४ – यजन्ते सात्विका देवान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ३ श्लोक यजन्ते सात्विका देवान् यक्षरक्षांसि राजसा: |प्रेतान् भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जना: || पद पदार्थ सात्विका: – जिनके पास सत्व गुण (अच्छाई) प्रचुर मात्रा में है, और इसी प्रकार की श्रृद्धा हैदेवान् – देवताओं कायजन्ते – पूजा करते हैं ;राजसा: – जिनके … Read more

१७.३ – सत्वानुरूपा सर्वस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २ श्लोक सत्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत |श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्ध: स एव स: || पद पदार्थ भारत – हे भरत कुल के वंशज!सर्वस्य – सबके लिएसत्वानुरूपा – उनके इच्छा के अनुसारश्रद्धा भवति – श्रद्धा होती हैअयं पुरुष:- यह व्यक्तिश्रद्धामय: – … Read more

१७.२ – त्रिविधा भवति श्रद्धा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १ श्लोकश्री भगवान उवाचत्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा |सात्विकी राजसी  चैव तामसी  चेति तां श्रुणु || पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – श्री भगवान बोलेदेहिनां – उनके लिए जिनके पास (भौतिकवादी) शरीर हैस्वभावजा सा श्रद्धा – विभिन्न विषयों में … Read more

१७.१ – ये शास्त्रविधिम् उत्सृज्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १६ श्लोक २४ श्लोक अर्जुन उवाच ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयाऽन्विता: |तेषां  निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तम: || पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन बोलाकृष्ण – हे कृष्ण!ये – वेशास्त्र विधिम् उत्सृज्य – शास्त्र के नियमों की अवहेलना करके भीश्रद्धया अन्विता: – … Read more

अध्याय १७ – श्रद्धात्रय विभाग योग या आस्था के त्रिस्तरीय प्रभाग की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय १६ भगवद् रामानुज आळवार् तिरुनगरी में , श्रीपेरुम्बुदूर् में , श्रीरंगम् में और तिरुनारायणपुरम् में आधार – http://githa.koyil.org/index.php/17/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

१६.२४ – तस्माच् चास्त्रं प्रमाणं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक २३ श्लोक तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ |ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि  || पद पदार्थ तस्मात् – इस प्रकारते – तुम्हारे लिएकार्या कार्य व्यवस्थितौ – यह निर्धारित करने के लिए कि क्या करना है और क्या त्यागना हैशास्त्रं – वेद ही एकमात्र … Read more

१६.२३ – यः शास्त्रविधिम् उत्सृज्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक २२ श्लोक य: शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारत : |न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां  गतिम् || पद पदार्थ य:- जोशास्त्र विधिम् – वेद जो मेरा आदेश हैउत्सृज्य – त्यागकरकाम कारत: वर्तते – अपनी इच्छा से कार्य करनास:- वहसिद्धिम् – परलोक … Read more